सभी को मान देने की परंपरा घोसी में कायम

सत्रहवीं लोकसभा चुनाव के पूर्व ही बाहरी भगाओ-मऊ बचाओ का दिया गया नारा इस बार भी मतदाताओं को रास न आया है। यह नारा चंद लोगों के दिमागी फितूर से अधिक कुछ भी न रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 23 May 2019 05:32 PM (IST) Updated:Thu, 23 May 2019 06:28 PM (IST)
सभी को मान देने की परंपरा घोसी में कायम
सभी को मान देने की परंपरा घोसी में कायम

जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : सत्रहवीं लोकसभा चुनाव के पूर्व ही 'बाहरी भगाओ-मऊ बचाओ' का दिया गया नारा इस बार भी मतदाताओं को रास न आया है। यह नारा चंद लोगों के दिमागी फितूर से अधिक कुछ भी न रहा है। इस बार भी बीते सात विधानसभाओं और बीते दो लोकसभा चुनावों की तर्ज पर घोसी के मतदाताओं ने बाहरी और भीतरी की भावना से परे होकर पार्टी के नाम पर मतदान किया है।

घोसी लोकसभा क्षेत्र में प्रथम आम चुनाव से लेकर 1969 में हुए उपचुनाव सहित वर्ष 2004 तक जिले के ही प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे हैं। विधानसभा क्षेत्रों में भी यही हाल रहा है। प्रथम बार लोकसभा चुनाव में 2009 में गैर जिले के प्रत्याशी के रूप में बहुजन समाज पार्टी के दारा सिंह चुनाव जीते तो वर्ष 2014 में 16 वीं लोकसभा चुनाव के लिए हुई जंग में बलिया के हरिनरायन राजभर ने जीत दर्ज किया। विधानसभा चुनावों में यह सिलसिला 1985 में फागू चौहान ने प्रारंभ किया हालांकि उन दिनों घोसी आजमगढ़ की तहसील थी। जनपद अलग होने के बाद भी फागू चौहान ने 1991 में जीत दर्ज किया तो वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ के ही अक्षयवर भारती ने जीत दर्ज किया।

बहरहाल श्री चौहान वर्तमान में छठवीं बार घोसी का विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उधर कई बार से चुनाव जीत रहे सदर विधायक मुख्तार अंसारी भी गाजीपुर के ही निवासी हैं। जाहिर है कि यह जिला बाहरी और भीतरी जैसे नारों से कदापि प्रभावित नहीं है। इस बार भी इस जिले के मतदाताओं ने गाजीपुर के अतुल राय को भारी मतों से विजयी होने का गौरव प्रदान किया है। बहरहाल 15वीं लोकसभा के चुनाव में दारा सिंह चौहान ने जिस मिथक को तोड़ जीत का कीर्तिमान बनाया उसे वर्ष 2914 में हरिनरायन राजभर ने तो अब गठबंधन प्रत्याशी श्री राय ने आगे बढ़ाया है। एक बार फिर यहां के मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि बाहरी भगाओ मऊ बचाओ का नारा सोशल मीडिया में पढ़ने और लिखने में भले ही अच्छा हो पर इसे यथार्थ रूप देना गंवारा नहीं है। यहां के मतदाता सभी को मान देते हैं और गले लगाते हैं।

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