धड़ल्ले से हुआ स्टाक पेमेंट, प्रशासन मौन

जनपद में केंद्रीय योजनाएं अनियमितता की जद में जकड़ी हुई हैं। गांवों में रोजगार से लेकर स्वच्छता व पेयजल के संकट को दूर करने वाली योजनाओं में करोड़ों का घोटाला भी पहले उजागर हो चुका है परंतु राजनीतिक व प्रशासनिक छांव में दागदार फल-फूल रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 07:28 PM (IST) Updated:Tue, 02 Jun 2020 06:12 AM (IST)
धड़ल्ले से हुआ स्टाक पेमेंट, प्रशासन मौन
धड़ल्ले से हुआ स्टाक पेमेंट, प्रशासन मौन

जागरण संवाददाता, मऊ : जनपद में केंद्रीय योजनाएं अनियमितता की जद में जकड़ी हुई हैं। गांवों में रोजगार से लेकर स्वच्छता व पेयजल के संकट को दूर करने वाली योजनाओं में करोड़ों का घोटाला भी पहले उजागर हो चुका है परंतु राजनीतिक व प्रशासनिक 'छांव' में दागदार फल-फूल रहे हैं। इसको लेकर अनियमित तरीके से गरीबों का रोजगार छीनकर अमीर फर्मों के खाते में करोड़ों की धनराशि भेजने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। प्रतिवर्ष ब्लाकों की चिह्नित ग्राम पंचायतों में मनरेगा एक्ट को तार-तार कर 'स्टाक पेमेंट' किया जा रहा है।

मनरेगा मद की धनराशि जैसे ही उपलब्ध हुई कि खंड विकास कार्यालय बाजी मारते हुए चंद मिनटों में प्राइवेट फर्मों के नाम पर करोड़ों रुपये पेमेंट कर ले रहे हैं। मैटेरियल मद में भुगतान के लिए जनपद के नौ ब्लाकों में वित्तीय वर्ष मनरेगा एक्ट के 60:40 रेशियो को भी तार-तार करने हुए लगभग 32 करोड़ रुपये का पेमेंट करा लिया गया। इसमें रानीपुर, रतनपुरा व कोपागंज ब्लाक में जमकर पेमेंट किया गया। मार्च व अप्रैल माह में जहां रानीपुर में लगभग सात करोड़ रुपये तो रतनपुरा ने आठ करोड़ से अधिक की धनराशि प्राइवेट फर्मों को बांट दी। इसमें अधिकतर कार्य ऐसे भी हैं कि वे धरातल पर शुरू भी नहीं हुए। हालांकि ब्लाक प्रशासन को इससे भी कुछ लेना-देना नहीं है। बस मन गया तो स्टाक पेमेंट कर दिया।

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फर्जी 'एमबी' करा होता है भुगतान

मनरेगा के मैटेरियल मद में कारगुजारी के लिए जैसे ही वित्तीय वर्ष की शुरुआत होती है या अंत होता है ब्लाक प्रशासन 'एक्टिव मोड' में आ जाता है। धड़ाधड़ फाइल तैयार कर प्रशासनिक व वित्तीय स्वीकृति ली जाती हैं तो धड़ाधड़ फर्जी एमबी यानि मेजरमेंट बुक भी तैयार कर ली जाती है। जैसे ही सूचना मिली कि मैटेरियल मद की साइट खुली गई, तो बस फिर क्या। धड़ाधड़ ब्लाक प्रशासन द्वारा एफटीओ यानि फंड ट्रांसफर आर्डर तैयार कर प्राइवेट फर्मों के खाते में मोटी धनराशि भुगतान कर ली जाती है।

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हर ब्लाकों में चिह्नित हैं प्राइवेट फर्म

मैटेरियल मद की कारस्तानी के लिए ब्लाकों के प्राइवेट फर्म चिह्नित हैं। ब्लाक कर्मियों व मनरेगा के जुड़े लोगों ने खुद की फर्में बना ली है। इन फर्मों को प्रत्येक वर्ष धडल्ले से लाभांवित किया जाता है। हर साल मोटी धनराशि के भुगतान होने के बाद भी जिला प्रशासन कभी भी इन फर्मों की जांच कराने की जहमत तक नहीं उठाता। इतना ही नहीं कई ग्राम पंचायतें तो ऐसी भी हैं जो खुद की फर्म बना रखी हैं।

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