घोसी में जलनिकास की राह में रेलवे का रोड़ा
घोसी (मऊ) किसी नगरपालिका का दर्जा प्राप्त करने को हर आवश्यक शर्त एवं निर्धारित आबादी से अधिक नागरिकों को समाहित करने वाली स्थानीय नगर पंचायत में न सीवर लाइन की और न ही जलनिकास की माकूल व्यवस्था है। हाल यह है कि थोड़ी सी बारिश हुई कि नहीं तमाम मुहल्लों में पानी लग जाता है। इसकी वजह से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ): किसी नगरपालिका का दर्जा प्राप्त करने को हर आवश्यक शर्त एवं निर्धारित आबादी से अधिक नागरिकों को समाहित करने वाली स्थानीय नगर पंचायत में न सीवर लाइन की और न ही जलनिकासी की माकूल व्यवस्था है। हाल यह है कि थोड़ी सी बारिश हुई कि नहीं तमाम मुहल्लों में पानी लग जाता है। इसकी वजह से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
दरअसल नगर के मध्य से रेलवे लाइन गुजरती है। यहां के 17 नालों में से 11 नाले रेलवे पटरी के किनारे स्थित वार्डों से बरसात एवं नाबदान का पानी प्रवाहित करने को निर्मित हैं पर इनका अंतिम मुहाना रेलवे पटरी के पास समाप्त हो जाता है। नगर के मध्य स्थित कई एकड़ भूमि रेलवे की संपत्ति है। इसके एक किनारे से नाला निकाले जाने के लिए वर्तमान चेयरमैन साकिया खातून एवं उनके प्रतिनिधि अब्दुल क्य्यूम अंसार के अथक प्रयास के चलते रेलवे ने हामी तो भरा है पर अभी तक अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिल सका है। रेलवे द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र नगर विकास मंत्रालय द्वारा आवश्यक धनराशि 3 करोड़ 13 लाख साठ हजार की राशि प्राप्त होने तक इस नगर पंचायत की जलनिकास व्यवस्था में फंसा रेलवे का पेंच यूं ही कायम रहेगा और सात वार्डों के नागरिक बरसात के दिनों में जलजमाव की समस्या से जूझते रहेंगे। 18 वार्डों वाली स्थानीय नगर में कहने को तो अब तक निर्मित 17 नालों कुल लंबाई लगभग 5.785 किमी है। नगर में जलाशयों का जाल भी है। बावजूद इसके जलनिकास की व्यवस्था सही नहीं है। दरअसल नगर सीमा में बने जलाशयों का पानी किसी बड़े ताल या बाहा से जुड़ा न होना समस्या है तो करीमुद्दीनपुर बाग क्षेत्र, मधुबन मोड़, बड़गांव सहित रोडवेज क्षेत्र के बीच स्थित वार्ड संख्या 2, 7, 8, 9, 14, 17 एवं 18 का पानी 11 नालों के जरिए रेलवे की भूमि में प्रवाहित होता है। रेलवे अपनी भूमि से नाला बनाने का विरोध करता है। इसके चलते बरसात के दिनों में समूचा पानी इन मुहल्लों में ही जाम हो जाता है। बरसात के चार दिनों बाद भी रेलवे पटरी के पश्चिमी किनारे बसे वार्ड संख्या नौ में घरों की चौखट तक लगा पानी समस्या को बखूबी प्रस्तुत करता है। वर्तमान चेयरमैन साकिया खातून ने 26 जून 2018 को इस समस्या को उठाते हुए तत्कालीन रेल राज्य मंत्री मनोज सिनहा के समक्ष अनुरोध पत्र प्रस्तुत किया। त्वरित कार्रवाई हुई तो 30 जून 2018 को पूर्वोत्तर रेल मंडल प्रबंधक वाराणसी ने मऊ के रेलवे सेक्शन इंजीनियर को जांच हेतु भेजा। जांच आख्या के आधार पर मंडल प्रबंधक ने नाला का नक्शा, प्राक्कलन एवं अन्य कागजात प्रस्तुत किए जाने पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए जाने की बात कहा। 02 जनवरी 19 को हर शर्त पूरी करते हुए चेयरमैन श्रीमती अंसारी ने रेलवे एवं राज्य सरकार(नगर विकास मंत्रालय)को पत्र प्रेषित किया। नाला निर्माण हेतु उन्होंने राज्य सरकार से तीन करोड़ 13 लाख 60 हजार रुपये की राशि आवंटित करने का अनुरोध किया। इसके बावजूद रेलवे मंत्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया है।
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नागरिक भी हैं जिम्मेदार
नगर में बरसात के दिनों में जल जमाव के लिए महज नगर पंचायत या रेलवे ही जिम्मेदार नहीं हैं। नागरिक भी कम दोषी नहीं हैं। तमाम स्थानों पर भवन स्वामियों एवं दुकानदारों ने नाले की पटरी पर सीढ़ी या अन्य निर्माण करा लिया है। इसके चलते सफाई के दौरान श्रमिक नाले के उक्त भाग को छोड़ देते हैं। ऐसे में सड़क एवं फुटपाथ का पानी नाले में नहीं जा पाता और जाता है तो अवरूद्ध हो जाता है। नालों में कूड़ा एवं पालीथिन डालने से नाले भी चोक हो जाते हैं।
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रोड़ा तो नहीं बनेगा अमान परिवर्तन
इन दिनों नगर से गुजरती इंदारा-दोहरीघाट रेल लाइन का अमान परिवर्तन चल रहा है। अभी कार्य प्रारंभ हुआ है। रेलवे ने नाला बनाए जाने हेतु अभी अनुमति दे तो सराहनीय होगा। अन्यथा अमान परिवर्तन एवं भवन निर्माण में काफी वक्त लगेगा। ऐसा हुआ तो चिरप्रतीक्षित अमान परिवर्तन नाला निर्माण की राह का रोड़ा बन जाएगा।