नहीं हुई धान की कटाई, कब होगी रबी की बोआई
सितंबर माह में हुई अतिवृष्टि का प्रकोप अब भी ताल एवं नालों के किनारे के खेतों में कायम है। इन क्षेत्रों में खेतों में अब पानी नहीं है पर कीचड़ है।
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : सितंबर माह में हुई अतिवृष्टि का प्रकोप अब भी ताल एवं नालों के किनारे के खेतों में कायम है। इन क्षेत्रों में खेतों में अब पानी नहीं है पर कीचड़ है। इसके चलते इनकी कटाई को न तो श्रमिक तैयार हैं ना हार्वेस्टर से कटाई संभव है। धान की फसल गंवा चुके इन किसानों के समक्ष अब रबी की बोआई भी समय से न होने का संकट है।
दरअसल जिले में सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में कई दिनों तक अनवरत बरसात के चलते ताल ओर पोखरे लबालब हो गए। इनका पानी खेतों तक जा पहुंचा। उधर उफनाते नालों ने किनारे के खेतों को पानी से भर दिया। पश्चिमी क्षेत्र से आए पानी ने तो तबाही मचा दिया। उधर मछली माने वालों ने नालों में अवरोध उत्पन्न कर दिया। इसके चलते जल निकास बाधित हो गया और उक्त पानी आसपास के खेतों को डूबो दिया। अब भी ऐसे खेतों में या तो हल्का पानी है या कीचड़ है। उधर धान की कटाई का समय बीतने के चलते तमाम हार्वेस्टर खड़े हो गए हैं जबकि ऐसे खेतों में अभी पंद्रह दिन बाद ही हार्वेस्टर घुस सकेगा। ऐसे खेत की कटाई के लिए श्रमिक भी नहीं तैयार होते हैं। इन क्षेत्रों के बड़े किसानों को कुछ सूझ नहीं रहा है। खरीफ की फसल बर्बाद तो हो ही गई पर जुताई योग्य होने में दिसंबर माह बीत जाएगा। जनवरी माह में ही इनकी बोवाई संभव है।
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ऐसे क्षेत्रों के किसान विलंब से बोई जाने वाली गेहूं की प्रजाति हलना का प्रयोग करें। यह प्रजाति का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 28-30 कुंतल है। अन्य प्रजाति की 10 दिसंबर के बाद बोआई करने पर उत्पादन में प्रतिदिन प्रति बीघा दस किग्रा की दर से कमी होती है।
-एसपी श्रीवास्तव, कृषि उपनिदेशक मऊ