हरी खाद के रूप में ढैंचा बोएं किसान
कृषि उपनिदेशक एसपी श्रीवास्तव ने गेहूं की कटाई के बाद खेत को खाली छोड़ने की बजाय ढैंचा की बोआई किए जाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि अनवरत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। मिट्टी के जीवाश्म या कार्बनिक तत्व कम हो रहे हैं या यूं कहें कि मिट्टी बांझ हो रही है।
जागरण संवाददाता, मऊ : कृषि उपनिदेशक एसपी श्रीवास्तव ने गेहूं की कटाई के बाद खेत को खाली छोड़ने की बजाय ढैंचा की बोआई किए जाने की सलाह दी है। बताया कि अनवरत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। मिट्टी के जीवाश्म या कार्बनिक तत्व कम हो रहे हैं या यूं कहें कि मिट्टी बांझ हो रही है। मिट्टी की भौतिक संरचना प्रभावित हो रही है। गोबर व कंपोस्ट खाद का प्रयोग लगभग समाप्त होने के चलते उन्होंने हरी खाद के रूप में ढैंचा को अनिवार्य एवं अंतिम विकल्प बताया है।
उप निदेशक कृषि ने इसकी बोआई की विधि बेहद आसान बताया है। बोआई के दौरान खेत में नमी आवश्यक है। नमी न होने पर भी किसान 15 मई तक इसकी बोआई कर दें। इसका बीज बेहद कड़ा होने के चलते जमीन में पड़ा रहेगा और पहली बारिश होते ही स्वत: जम जाएगा। यदि सिचाई का साधन हो तो किसान एक सिचाई कर सकते हैं। उन्होंने प्रति बीघा दस किग्रा की दर से बीज का छिड़काव करने की सलाह दी है। बोआई या बाद में किसी तरह के उर्वरक की आवश्यकता नहीं है। स्पष्ट करते हुए कहा कि धान की रोपाई के एक सप्ताह या दस दिन पूर्व नहीं वरन किसान जिस दिन धान की रोपाई करनी हो, सुबह ढैंचा को पलट दें और तुरंत धान की रोपाई कर दें। उन्होंने कहा कि मृदा जीर्णोद्धार एवं उत्पादन में वृद्धि के लिए इसकी बोआई अवश्य करें।