हर कदम दिक्कतों से जूझ रहा है किसान
जागरण संवाददाता घोसी (मऊ) खेती किसानी के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे हैं मशीनी युग में ड
जागरण संवाददाता, घोसी (मऊ) : खेती किसानी के लिए श्रमिक नहीं मिल रहे हैं, मशीनी युग में डीजल और बिजली की दर दोनों में वृद्धि किसानों की कमर तोड़ रही है। मानक की मार और स्टेट पूल लागू न होने से किसान शासकीय क्रय केंद्रों पर धान बेचने के प्रति उदासीन है। दरअसल प्रतिवर्ष धान खरीद में पेचीदगी बढ़ रही है। एक गाटा में अंकित प्रत्येक हिस्सेदार को अलग-अलग पंजीकरण कराना होगा। तमाम ऐसे किसान है जो विदेश में हैं या प्रदेश में हैं और उनका कोई एक स्वजन ही खेती करता है। ऐसे किसानों के हिस्से का धान नहीं बिक सकेगा। इसका परिणाम यह कि घर पर रह रहा किसान समूचा धान केंद्र से इतर बेचेगा। भुगतान के लिए इलेक्ट्रानिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम लागू हो गया है। तमाम किसानों के आधार कार्ड बैंक खाते से लिक नहीं हैं। इससे इतर क्रय किए जाने के लिए धान के बाबत भारतीय खाद्य निगम के मानक एवं किसान के हिस्से के क्षेत्रफल के आधार पर क्रय की जाने निर्धारित मात्रा में कमी को लेकर किसान, क्रय केंद्र प्रभारी एवं राइस मिलर के बीच खींचतान है। जिले की तमाम राइस मिलें अब भी डिबार हैं। महज चंद मिलें ही अनुबंधित हो सकी हैं। यह मिलें कितना धान कूटेगी, समझा जा सकता है। इन मिलों पर जिले के 45 क्रय केंद्रों से खरीदे गए धान की कुटाई मे काफी समय लगेगा। कुटाई के बाद भारतीय खाद्य निगम को चावल की प्रथम खेप भेजने एवं चावल स्वीकृत होने के बाद ही मिलें कुटाई की गति बढ़ाएगी। यदि तनिक भी दिक्कत हुई तो मिलें हाथ खड़ा कर लेंगी। इन समस्त समस्याओं के समाधान के लिए स्टेट पूल योजना को दोबारा लागू करना ही एकमात्र विकल्प है।
वर्ष 11-12 एवं इसके बाद सीएमआर (वह चावल जो केंद्रों से लिए गए धान की कुटाई के बाद एफसीआइ गोदाम में पहुंचाना आवश्यक है) का ऐसा झाम हुआ कि जिले की चंद मिलों को अपवाद मान लें तो अधिकांश मिलें काली सूची में हैं। इन तथ्यों के बीच महज एक विकल्प है। इसमें एफसीआई की भागीदारी के बिना ही धान खरीद की जा सकती है। एक दशक से बंद पड़ी स्टेट पूल योजना को लागू किया जाए। इसके तहत विपणन विभाग क्रय केंद्र से क्रय धान की कुटाई कराता है। प्राप्त चावल को विपणन विभाग ही अपने केंद्रों के माध्यम से पात्र गृहस्थी एवं अंत्योदय कार्ड धारकों को वितरण के लिए कोटेदारों को निर्गत करता है। जानकारों की मानें तो इस व्यवस्था से समय एवं किराया दोनों की बचत होती है। स्टेट पूल के जरिए खरीद एवं वितरण की व्यवस्था ही मिलरों एवं किसानों सहित विभाग को समस्याओं से निजात दिला सकती है।
विपणन, भारतीय खाद्य निगम एवं कृषि मंडी विभाग के लिए राइस मिलें अनुबंधित हो चुकी हैं। सहकारिता क्षेत्र के केंद्रों के लिए मिलों के अनुबंध की कवायद अंतिम चरण में है। निर्धारित मानक के अनुसार धान होने पर हरेक किसान का धान क्रय होगा।
- विपुल कुमार सिन्हा, जिला खाद्य एवं विपणन अधिकारी मऊ।