सूर की याद में दीपों से जगमग होगी आज परासौली

1.25 लाख पदों के रचयिता सूरदास की 544वीं जयंती

By JagranEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 05:11 AM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 05:11 AM (IST)
सूर की याद में दीपों से जगमग होगी आज परासौली
सूर की याद में दीपों से जगमग होगी आज परासौली

संवाद सहयोगी,गोवर्धन (मथुरा): साहित्य गगन पर सूर्य की मानिद दमक रहे कृष्ण प्रिय, अष्टछाप के महान कवि सूरदास की 544 वीं जयंती सोमवार को गांव परासौली में घर-घर दीप जलाकर मनाई जाएगी। यहां सूर ने 1.25 लाख पदों की रचना की। दुनिया में उनके पदों की अनूठी छाप है। जो वात्सल्य रस से ओतप्रोत हैं।

भक्तमाल के रचयिता श्रीनाभा जी के अनुसार, सूरदासजी उद्धवजी के अवतार थे। सूरदासजी की जन्मस्थली पर दो राय है, कुछ लोग आगरा के रुनकता को जन्म स्थान मानते हैं तो कुछ विद्वान हरियाणा के सीही (पलवल) को। सूरदास जी का जन्म वैशाख सुदी पंचमी संवत 1535 में हुआ। वह जन्मांध थे, कहा जाता है, सूर के नेत्रों के गोलक भी न थे। 15 वर्ष की अवस्था में महाप्रभु बल्लभाचार्य से दीक्षा ली। इससे पहले सूर विनय के पद लिखा करते थे। वल्लभाचार्यजी की कृपा से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गायन किया। साहित्य में वात्सल्य रस के कुशल चितेरे कहे जाने वाले सूर श्रीनाथजी को नित्य कीर्तन सुनाने परासौली से जतीपुरा जाया करते थे। उन्होंने 1.25 लाख पदों की रचना का संकल्प लिया, लेकिन यह संख्या 75 हजार के आस पास पहुंच गई। शारीरिक असमर्थता से संकल्प पूरा न होने पर स्वयं श्रीनाथजी ने बाकी पदों की रचना कर सूरदासजी का संकल्प पूरा किया। माना जाता है, सूरदासजी के पदों में सूर श्याम छाप वाले पद श्रीनाथजी ने लिखे। सूरदास, सूर या सूरज प्रभु की छाप के पद सूरदासजी के हैं। चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार, गोपाल नाम के ब्रजवासी सूरदासजी की सेवा में रहा करते थे और उनके पदों को लिखा करते थे। सूरदासजी की भौतिक आंखें तो नहीं थी पर हृदय के अलौकिक नेत्रों से श्रीनाथजी की लीलाओं का दर्शन कर गायन किया करते थे। प्रसिद्ध वार्ता है कि बल्लभ संप्रदाय के तत्कालीन आचार्य बालकों ने नवनीत प्रियाजी को फूलों का श्रृंगार कर सूरदासजी से श्रृंगार के कीर्तन गाने का आग्रह किया, जिसके चलते सूरदास ने 'आज हरि देखे नंगम नंगा..' पद सुनाया। यह सुन उनकी भक्ति पर उंगली उठाने वाले निरुत्तर हो गए। 105 वर्ष की आयु में से 73 वर्ष सूरदास परासौली में रहे। सूर सागर, साहित्य लहरी, सूर सारावली जैसे ग्रंथों की रचना की। वर्तमान में करीब साढ़े सात हजार पद प्राप्त हैं। संवत 1640 में परासौली में सूरदास ने इस संसार से विदा ली। सूरदासजी की समाधि परासौली में है।

परासौली निवासी भागवत किकर गोपाल प्रसाद उपाध्याय ने बताया, कोरोना क‌र्फ्यू के कारण सूरदास जी की 544वीं जयंती घर-घर दीप जलाकर और उनके रचित पदों का गायन कर मनाई जाएगी। नहीं दिखाना चाहते थे पीठ:

सूरदास जी की सद्गुरु देव और ब्रज रज में अगाध आस्था देखने को मिलती है। कहा जाता है, अंतिम समय में उन्हें सीधा लिटाया गया तो उन्होंने गुंसाई से उल्टा लिटाने का अनुरोध किया। गुंसाई के कारण पूछने पर उन्होंने बताया वह अंतिम समय में ब्रजरज को पीठ दिखाकर नहीं जाना चाहते।

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