वंशीवट पर अब नहीं गूंजते मुरली के स्वर
द्वापर में कालिदी किनारे भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजगोपियों संग किया था महारास अनदेखी का शिकार हुई महारास स्थली वंशीवट
संवाद सहयोगी, वृंदावन: द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में कालिदी किनारे वंशीवट पर ब्रजगोपियों संग महारास किया, तो देवता भी इस महारास का दर्शन करने को बेताब थे। इसका प्रमाण है कि खुद भगवान भोलेनाथ खुद को रोक न सके और गोपीरूप रखकर महारास में प्रवेश पाने में सफल हुए। लेकिन आज हालात ये कि शरद पूर्णिमा पर उसी वंशीवट की सुध लेने वाला कोई नहीं। जबकि भाजपा शासन में प्राचीन लीलास्थलियों को पुरातन स्वरूप और सांस्कृतिक विकास की बात कही जा रही है।
जी हां, यह वंशीवट स्थान वही है, जो भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में तरह-तरह की लीलाएं कीं। तहसील मांट मुख्यालय से एक किमी दूर यमुना किनारे यह स्थान है यहां पर कन्हैया नित्य गाय चराने जाते थे। इसका कुछ हिस्सा आज वृंदावन में गोपीश्वर महादेव मंदिर के समीप भी है। यहां भगवान श्रीकृष्ण के वेणु वादन, दावानल का पान, प्रलंबासुर का वध तथा नित्य रासलीला करने का साक्षी रहे इस वट का नाम वंशीवट इसलिए पड़ा कि इसकी शाखाओं पर बैठकर श्री कृष्ण वंशी बजाते थे। मान्यता है कि वंशीवट नामक इस वटवृक्ष से आज भी कान लगाकर सुनें तो ढोल मृदंग, राधे-राधे की आवाज सुनाई देती है। यह वही पवित्र स्थान है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में गोपियों संग महारास किया था। समय के साथ इस स्थान को न केवल लोगों ने भुला दिया। बल्कि शासन और प्रशासन की अनदेखी ने भी इसे विलुप्त के कगार पर पहुंचा दिया। हालांकि जब श्रद्धालु ब्रज चौरासीकोस परिक्रमा करने निकलते हैं, तो इस वंशीवट के दर्शन किए बिना नहीं रह पाते।