15 युवाओं की टोली तीन साल करती रही श्रमदान

विनीत मिश्र मथुरा कान्हा की भक्ति में जो रमा उनका ही होकर रह गया। आराध्य के प्रति अगाध

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Sep 2020 05:25 AM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 05:25 AM (IST)
15 युवाओं की टोली तीन साल करती रही श्रमदान
15 युवाओं की टोली तीन साल करती रही श्रमदान

विनीत मिश्र, मथुरा: कान्हा की भक्ति में जो रमा, उनका ही होकर रह गया। आराध्य के प्रति अगाध आस्था ही थी कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ऊबड़-खाबड़ टीले को 15 युवाओं की टोली ने श्रमदान कर समतल कर दिया था। ये टोली तीन साल तक रोज सुबह तीन-चार घंटे तक जुटी रहती थी।

वर्ष 1951 श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का गठन हुआ। जिस श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर आज भव्य मंदिर है, वहां कभी टीला था। ऊबड़-खाबड़ और बडे़-बड़े गड्ढे। ऐसे टीले को समतल करना आसान नहीं था। तब इतने संसाधन भी नहीं थे। लेकिन प्रभु के प्रति श्रद्धा ने इस कठिन काम को भी आसान बना दिया।

टीला को समतल करने का काम किया था 15 युवाओं की एक टोली ने। इस टोली के सक्रिय सदस्य रहे शहर के गोपाल नगर में रहने वाले 87 वर्षीय द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी से जब श्रमदान की चर्चा की, तो उनके चेहरे के भाव ने ही बहुत कुछ बता दिया। बकौल द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी, वर्ष 1952 की बात है। तब मेरी उम्र 19 साल की रही होगी। कचहरी में टाइपिस्ट था। साथी टाइपिस्ट गोपीनाथ चौबे ने एक दिन कहा, हम लोग टीले पर चलकर श्रमदान करते हैं, उसे समतल बनाते हैं। आराध्य कान्हा के प्रति अगाध आस्था थी, मैं तुरंत तैयार हो गए। अपने साथ सत्यपाल, गोपाल दास, फूलचंद आदि करीब 15 हमउम्र साथियों को भी श्रमदान में शामिल कर लिया। रोज सुबह कुदाल और फावड़ा लेकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान के टीला पर पहुंच जाते। ऊबड़-खाबड़ हिस्से की खोदाई करते। इस मिट्टी को गड्ढे में डालने के लिए एक जुगाड़ की। दो डंडों में टाट की बोरी बांधी और इसमें मिट्टी भरकर गड्ढे तक ले जाते थे। इसी तरह, ईंटों के टुकड़े और पत्थरों को भी गड्ढे में डालते। ये क्रम रोज सुबह तीन-चार घंटे तक चलता। इसके बाद हम सब अपने-अपने दैनिक कार्य के लिए लौट जाते। करीब तीन साल की निरंतर मेहनत के बाद वह स्थान समतल हो गया।

वर्ष 1956 में इस स्थान पर केशव देव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, 1958 में मंदिर बन गया। द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी बताते हैं कि जिस स्थान पर आज भव्य भागवत भवन बना हैं, उसके नीचे काफी बड़ा गड्ढा था, उस गड्ढे को भी हम लोगों ने बंद किया था। भागवत भवन को बनने में करीब 20 वर्ष लग गए। बोले, उम्र का आखिरी पड़ाव है, ये शरीर प्रभु के मंदिर के काम आया, इससे अच्छा जीवन में और कुछ नहीं हो सकता।

chat bot
आपका साथी