प्रेम का क्रियात्मक रूप है सेवा : मोरारी बापू
कािर्ष्ण उदासीन आश्रम रमणरेती महावन में चल रही रामकथा के सातवें दिन कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि जिसे प्यास लगती है वह पानी का मोल भाव नहीं करता।
संवाद सहयोगी, महावन: कािर्ष्ण उदासीन आश्रम रमणरेती महावन में चल रही रामकथा के सातवें दिन कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि जिसे प्यास लगती है, वह पानी का मोल भाव नहीं करता। प्यास प्रीत को जन्म देती है। प्रेम का क्रियात्मक रूप सेवा ही है। तभी सब कहते हैं, साधु सेवा काम हमारा, काम न दुनियादारी ते। चाहे सेवा देश की हो, साधु की हो, गाय की हो, हिरण की हो या मानव की। सेवा सबसे बड़ा धर्म है।
मोरारी बापू ने गेहूं का उदाहरण देते हुए कहा कि गेहूं को कितने कष्टों से गुजरना पड़ता है। पहले गेहूं को सूप में फटकार लगती है। फिर उसे पीसा जाता है, उसके बाद उसे गूंथा जाता है, फिर उसे अग्नि पर सेंका जाता है। इसके बाद गेहूं को अहंकार होता है, रोटी उसकी फूल जाती है, महिलाएं उसे पटक कर मारती हैं, तो रोटी फट जाती है। उसका अहंकार दूर हो जाता है। फिर रोटी पर घी लगाकर परोसा जाता है, तो उसका मान-सम्मान बढ़ जाता है। इसी प्रकार साधु को कई कसौटियों से गुजरना पड़ता है। मानव को जीवन में हरि भजन की प्यास होनी चाहिए। जब उसे प्यास होगी, तो वह इधर -उधर भटकने लगेगा और एक दिन उसकी इच्छा की पूर्ति अवश्य होगी। प्यास प्रेम को प्रकट करने का बोध है। बापू ने प्रेम को पांच प्रकार का बताया,अविरल प्रेम, निर्भर प्रेम, अति प्रेम, परम प्रेम, अंतर प्रेम। प्रेम की व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान श्री राम व भरत में परम प्रेम था। मारीच व भगवान श्री राम में अंतर प्रेम था। बापू ने कहा, रामकथा एक मणि है, श्रोता की महिमा भी अलग है। रामकथा श्रवण करने से भक्ति का प्रादुर्भाव होता है। कथा में राम जन्मोत्सव की लीला का विस्तृत वर्णन किया। कथा के दौरान हरिनाम संकीर्तन पर श्रद्धालु जमकर झूमे। रामकथा पांडाल में उपस्थित पीठाधीश्वर कािर्ष्ण गुरुशरणानंद महाराज,कािर्ष्ण गोविदानंद महाराज, मीडिया प्रभारी कािर्ष्ण हरदेवानंद महाराज, मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्र दास महाराज, व्यवस्थापक उमेश जटवानी,चंदर अरोड़ा आदि भक्त मौजूद थे।