राधारानी के धाम में गूंज रहे सीताराम, द्वारकाधीश के जयकारे

ये सनातन संस्कृति का सौंदर्य है। अलग-अलग साध्य संप्रदाय के बाद भी गजब का सा

By JagranEdited By: Publish:Wed, 03 Mar 2021 03:11 AM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 03:11 AM (IST)
राधारानी के धाम में गूंज रहे सीताराम, द्वारकाधीश के जयकारे
राधारानी के धाम में गूंज रहे सीताराम, द्वारकाधीश के जयकारे

संवाद सहयोगी,वृंदावन: ये सनातन संस्कृति का सौंदर्य है। अलग-अलग साध्य, संप्रदाय के बाद भी गजब का सामंजस्य। किसी के साध्य श्रीराम हैं, तो कोई लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण का उपासक है। कोई श्रीराम की रंगनाथ रूप में सेवा कर रहा है, तो कोई श्रीकृष्ण को द्वारकाधीश के रूप में भज रहा है। भारतीय संस्कृति की यह खूबसूरती विदेशियों को भी भा रही है।

यमुना किनारे कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक में चार संप्रदाय के वैष्णव साधकों ने डेरा डाला है। इनमें श्री निंबार्क, रामानंदी, माध्वगौड़ेश्वर और विष्णुस्वामी संप्रदाय शामिल हैं। चारों संप्रदायों के श्रीमहंतों, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, द्वाराचार्य, परिवाराचार्य, आचार्य व महंत शामिल हैं। श्रीनिबार्क संप्रदाय, वैष्णवों के चार संप्रदायों में अत्यंत प्राचीन है। इस संप्रदाय का सिद्धांत 'द्वैताद्वैतवाद' पर टिका है। इसी को 'भेदाभेदवाद' भी कहा जाता है। श्रीनिबार्क संप्रदाय के साध्य भगवान श्रीराधाकृष्ण का जुगलकिशोर स्वरूप है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य द्वारा स्थापित रामानंदी संप्रदाय में सीताराम की उपासना प्रमुख है। माध्वगौड़ेश्वर संप्रदाय के साधक आराध्य की उपासना श्रीराधाकृष्ण स्वरूप में करते हैं। वृंदावन में इसी संप्रदाय के सप्तदेवालय हैं। भक्ति आंदोलन में भी इस संप्रदाय के आचार्यों की अहम भूमिका रही है। विष्णुस्वामी या बल्लभाचार्य संप्रदाय के साध्य भगवान श्रीकृष्ण द्वारकाधीश, श्रीनाथजी के रूप में हैं। बल्लभ संप्रदाय के साधक इनकी राजा के रूप में साधना करते हैं। वर्जन

- कुंभ पूर्व वैष्णव बैठक में चारों संप्रदायों के जगद्गुरु, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, द्वाराचार्य, महंत मौजूद हैं। चारों संप्रदायों के साधक भी हैं। हर संप्रदाय के साधक अपने साध्य के नाम से ही एक-दूसरे का अभिवादन करता है। ऐसा सामंजस्य केवल और केवल सनातन संस्कृति में ही देखने को मिलता है।

-महंत फूलडोल बिहारीदास, श्रीमहंत चतु:संप्रदाय।

chat bot
आपका साथी