एक बार फिर सुर्खियों में आया गोपालबाग आश्रम

आश्रम की भूमि पर कब्जे की शिकायत पर धर्माचार्यों ने जताई नाराजगीव्यवस्था संभाल रहे संत ने नकारे आरोप

By JagranEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 06:29 AM (IST) Updated:Fri, 22 Jan 2021 06:29 AM (IST)
एक बार फिर सुर्खियों में आया गोपालबाग आश्रम
एक बार फिर सुर्खियों में आया गोपालबाग आश्रम

संवाद सहयोगी, वृंदावन: गोपाल बाग आश्रम पर कब्जे को लेकर महंत की हत्या कर दी गई। इसके बाद संत समाज ने एकजुट होकर आश्रम के संचालन का जिम्मा संभाला, तो एकबार फिर आश्रम की भूमि पर कब्जे की चर्चा सुनाई देने लगी। आश्रम की भूमि पर कब्जे की शिकायत को लेकर पहुंचे धर्माचार्य तो मामला गर्माता नजर आया। हालांकि पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मामला अभी थम गया है, लेकिन संतों और धर्माचार्यों में आश्रमों पर कब्जे को लेकर अंदरखाने विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं।

अटल्ला चुंगी स्थित गोपाल बाग आश्रम के महंत बालमुकुंद शास्त्री की उनके ही कार चालक ने अपने साथियों संग हत्या कर दी थी। शव जलाकर मांट क्षेत्र के जंगल में डाल दिया था। इसके पीछे भी आश्रम पर कब्जा करने की साजिश सामने आई। फिलहाल आरोपितों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। शहर के संत समाज ने इसका संचालन अपने हाथ में लेकर महंत हरिशंकर नागा को आश्रम संचालन की जिम्मेदारी दे डाली। सबकुछ सामान्य चल रहा था कि चार दिन पहले एकबार फिर आश्रम पर कब्जे की नीयत से दीवार खड़ी करने की चर्चा सामने आई तो का‌िर्ष्ण नागेंद्र महाराज, महामंडलेश्वर नवल गिरि समेत अनेक धर्माचार्य आश्रम पहुंचे। दीवार बनाए जाने का विरोध किया। जिस पर महंत हरिशंकर नागा ने एक व्यक्ति के भूमि संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत कर उसके मालिकाना हक होने की जानकारी धर्माचार्यों को दी। लेकिन इससे जब धर्माचार्य संतुष्ट न हुए तो पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। धर्माचार्यों के बीच विवाद की सूचना पर मयफोर्स के आश्रम पहुंचे कोतवाली प्रभारी अनुज कुमार ने कहा किसी भी आश्रम में अवैध कब्जा नहीं करने दिया जाएगा।

हरिनिकुंज और बेनामी आश्रम में भी संतों की मनमानी: आश्रमों पर कब्जे के मामले लगातार बढ़ते नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों मोतीझील स्थित बेनामी आश्रम के स्वामित्व को लेकर महंत और ट्रस्टियों में झगड़े हुए। मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था, कि शहर के मध्य हरिनिकुंज चौराहा पर प्राचीन हरिनिकुंज आश्रम पर ही हरिद्वार स्थित निर्मल अखाड़ा के संतों ने कब्जा कर ट्रस्टियों को आश्रम के बाहर कर दिया। मामले में पहले तो स्थानीय संत समाज इस कार्रवाई का विरोध कर रहा था। लेकिन जब बड़े संतों और राजनीतिज्ञों के दखल की बात सामने आने लगी तो स्थानीय संत अखाड़े के साथ खड़े नजर आने लगे।

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