परिक्रमा को जाऊं मेरे वीर, नाय माने मेरो मनुआं

संवाद सूत्र सुरीर खींच कर उतार देती हूं उम्र की चादर ये मोहब्बत कभी बूढ़ा नहीं होने द

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Sep 2020 05:10 AM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 05:10 AM (IST)
परिक्रमा को जाऊं मेरे वीर, नाय माने मेरो मनुआं
परिक्रमा को जाऊं मेरे वीर, नाय माने मेरो मनुआं

संवाद सूत्र, सुरीर: खींच कर उतार देती हूं उम्र की चादर, ये मोहब्बत कभी बूढ़ा नहीं होने देती। ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा में हाथों में बुढ़ापे की लाठी थामे और प्रेम की लकीर को लंबा करते हुए अस्सी साल की उम्र में एक दूसरे का सहारा बन कर पड़ाव दर पड़ाव बढ़ रहीं वृद्धा कोको और बुद्धो दुनिया को यही संदेश दे रहीं हैं। मन में अपने आराध्य से मोक्ष की कामना और दिल से उठते उत्साह के हिलोरे उनकी मंजिल तक पहुंचने के लिए काफी है।

छाता के गांव चंदोरी निवासी 80 वर्षीय वृद्धा कोको भले ही अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर हों, पर अधिक मास में बृज चौरासी कोस परिक्रमा करने का उनका जज्बा आज भी बरकरार है। कमर झुकी हुई और हाथ में लाठी के सहारे कदम बढ़ाने वाली कोको अपनी हम उम्र बुद्धो के साथ इन दिनों बृज चौरासी कोस की परिक्रमा दे रहीं हैं। यही उत्साह साथ चल रहीं बुद्धो के चेहरे पर दिख रहा है। बुधवार से उन्होंने पलवल के गांव बंचारी से परिक्रमा शुरू की है। धीरे-धीरे अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहीं दोनों वृद्धा रविवार शाम सुरीर के देवी मंदिर पर पहुंच गईं। जहां रात्रि विश्राम के दौरान कोको ने बताया कि अब से पहले वह पांच और बुद्धो तीन बार चौरासी कोस की परिक्रमा लगा चुकी हैं। महिलाओं ने बताया कि अधिक मास में चौरासी कोस की परिक्रमा करने की मन में हिलोर उठ रहीं थीं। उन्होंने परिक्रमा जाने की इच्छा जताई तो स्वजनों ने मना कर दिया, लेकिन वह स्वजनों की नजर बचा कर परिक्रमा को निकल आईं। उधर, चौरासी कोस में इन दोनों वृद्धाओं के जज्बा को देख लोग उनके सामने नतमस्तक हो रहे हैं।

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