मुफलिसी के दामन में उम्मीदों की सौगात

जेएनएन मथुरा बेबसी का अंधेरा छांटकर शनिवार को प्रवासी मजदूरों के घरों में भी उम्मीदों के दीपक जले। अफसर घर की चौखट पर पहुंचे तो समाजसेवियों ने भी मदद को हाथ बढ़ाए।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 31 May 2020 12:53 AM (IST) Updated:Sun, 31 May 2020 06:04 AM (IST)
मुफलिसी के दामन में उम्मीदों की सौगात
मुफलिसी के दामन में उम्मीदों की सौगात

जेएनएन, मथुरा: बेबसी का अंधेरा छांटकर शनिवार को प्रवासी मजदूरों के घरों में भी उम्मीदों के दीपक जले। अफसर घर की चौखट पर पहुंचे, तो समाजसेवियों ने भी मदद को हाथ बढ़ाए। जागरण ने बरसाना और नंदगांव के पांच प्रवासी मजदूर परिवारों का दर्द उकेरा था। प्रवासी मजदूरों ने इसके लिए दैनिक जागरण को धन्यवाद दिया।

मानपुर के हरी सिंह के परिवार में सात लोग हैं। 20 साल से फरीदाबाद में मेहनत-मजदूरी करते थे। लॉकडाउन के दौरान गांव लौट आए। गांव में ही एक से उधार रुपये लिए और उसमें से दस हजार रुपये फरीदाबाद के मकान का भाड़ा चुकाया। राशन का इंतजाम तो गांव के प्रधान ने किया, लेकिन आगे कोई सहारा नहीं था। जागरण ने इनकी समस्या को प्रमुखता से उठाया, तो शनिवार को प्रशासनिक अधिकारी हरी सिंह समेत दो अन्य परिवारों के पास पहुंचे और उन्हें राशन की किट दी। हरी सिंह के पास न तो राशन कार्ड है और न ही मनरेगा से मजदूरी के लिए जॉब कार्ड, दोनों आज ही बन गए। इससे पहले सुबह फरीदाबाद के प्रमुख उद्योगपति केआरएस ग्रुप के एमडी जयप्रकाश त्यागी हरी सिंह और चार अन्य परिवारों के यहां सभी को राशन की किट सौंपी। वह पहले हरी सिंह के घर गए और एक पखवाड़े से अधिक का राशन मुहैया कराया। इसके बाद गुरुग्राम से लौटे धर्मवीर और राजेंद्र के घर भी पहुंचे और राशन की किट दी। इसमें आटा, चावल से लेकर मसाले, चाय की पत्नी, सरसों का तेल और अन्य सामग्री थी। इसके बाद नंदगांव के लखन और नानकचंद के घर पर भी राशन की किट पहुंची। लखन और उसके भाई जितेंद्र बाहर कंबाइन मशीन चलाते हैं, लेकिन लॉकडाउन में घर आ गए थे। कमाई का कोई साधन नहीं है। मां के इलाज के लिए एक लाख रुपये कर्ज लिया था, उसे भी चुकाना है। राशन कार्ड से राशन तो मिल जाता है, लेकिन बाकी दिक्कत थीं। वहीं यहां के रहने वाले कारपेंटर नानकचंद के सामने भी समस्या थी। नानकचंद ने भी बताया कि उन्होंने कर्ज लिया था। इन दोनों परिवारों के पास भी राशन पहुंचा तो आंखें खुशी से चमक उठीं। उद्योगपति जयप्रकाश त्यागी ने बताया कि उन्होंने प्रवासी मजदूरों की व्यथा जागरण में पढ़ी थी, इसलिए मदद को दौड़े।

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