धवल चांदनी में महारास देख मचल उठीं चंद्र सरोवर की लहरें

महारास को चंद्र सरोवर ने किया 51 सौ झिलमिल दीपों से श्रृंगारमंदिरों में श्वेत वस्त्र धारण कर आराध्य ने दिए दर्शन

By JagranEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 06:19 AM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 06:19 AM (IST)
धवल चांदनी में महारास देख मचल उठीं चंद्र सरोवर की लहरें
धवल चांदनी में महारास देख मचल उठीं चंद्र सरोवर की लहरें

संवाद सूत्र,(मथुरा) गोवर्धन: चंद्रमा ने आसमान से ज्योंही शीतल चांदनी को धरा पर बिखेरना शुरू किया, तो महारास को चंद्र सरोवर की लहरें भी मचलने लगीं। परासौली का कण-कण अपनी किस्मत पर इठलाने लगा। जुगनुओं से जलते दीपों की रोशनी से चंद्र सरोवर भी झिलमिला उठा। शांत वातावरण में रस घोलती बांसुरी की धुन से भक्त श्रीकृष्ण के महारास की कल्पना के सागर में गोते लगाते रहे। शुक्रवार को शरद पूर्णिमा पर ब्रज वसुंधरा प्रभु की महारास लीला के आनंद सागर में ऐसी डूबी कि गिरिराज महाराज की दिव्य लीला भूमि खुद के सौभाग्य पर मुस्करा उठी। मंदिरों में प्रभु ने श्वेत वस्त्र धारण कर भक्तों को दर्शन दिए। श्रद्धालुओं को खीर का प्रसाद बांटा गया। उल्लास में डूबा शरद का उत्सव

ब्रज भूमि को नित्य उत्सव भूमि की संज्ञा प्राप्त है, लेकिन राधाकृष्ण का ब्रज गोपिकाओं संग महारास का ये उत्सव शरद पूर्णिमा पर निराला ही होता है। चंद्र सरोवर में 51 सौ दीप जलाए तो महारास स्थल रोशन हो गया। सूर श्याम गोशाला प्रबंधक देवेंद्र शर्मा, गिरधारी मुखिया, ओम प्रकाश कौशिक ने सरोवर की लहरों को दीपों से सजाया था। अद्भुत सौंदर्य पर आज चंद्र सरोवर भी इठला रहा था। स्वर और सुर के संगम में बही भक्ति की रसधारा और बांसुरी की धुन दर्शकों को आनंद के चरम पर पहुंचा रही थी। मलूक पीठाधीश्वर आचार्य राजेंद्र दास जी के सानिध्य में श्रीराम शर्मा के निर्देशन में आयोजित महारास को दर्शक अपलक निहारते रहे। मंदिरों में आज भगवान रास बिहारी को खीर का भोग समर्पित किया गया। ठहर गया था वक्त

भागवत किकर गोपाल प्रसाद उपाध्याय बताते हैं कि महारास की आभा ने वक्त को सम्मोहित कर ठहरने पर मजबूर कर दिया। आसमान से छह महीने तक चंद्र देव (चंद्रमा) अपने स्थान से नहीं हटे। प्रभु की लीला के दर्शन को दिन निकलने तक चांद मचलता रहा। चंद्रमा के द्रवित रस से ही परासौली में चंद्र सरोवर का निर्माण हुआ। वाराह पुराण में परासौली का उल्लेख तो यही कहता है। गर्ग संहिता में चंद्र सरोवर का महात्म्य बताया गया है। महाप्रभु बल्लभाचार्यजी के मतानुसार दिव्य स्थलों से सजी ब्रज वसुंधरा का हिस्सा परासौली सारस्वत कल्प की वही पवित्र भूमि है, जहां प्रभु ने गोपियों के साथ छह महीने की रात्रि का निर्माण करके महारास किया।

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