सहेज लो हर बूंद: उपेक्षा से सूख गया जुडे़रा का तालाब

विकास खंड बेवर के गांव जुड़ेरा में कूड़ा डालकर पाट दिया तालाब हर साल गिर रहा भूजल स्तर।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Apr 2021 06:05 AM (IST) Updated:Fri, 16 Apr 2021 06:05 AM (IST)
सहेज लो हर बूंद: उपेक्षा से सूख गया जुडे़रा का तालाब
सहेज लो हर बूंद: उपेक्षा से सूख गया जुडे़रा का तालाब

संसू, बेवर : विकास खंड बेवर की ग्राम पंचायत अहमदपुर करुआमई के गांव जुडे़रा के तालाब की स्थिति बदतर है। गांव वालों की अनदेखी के कारण तालाब का पानी सूखने लगा है। गिरते जलस्तर का असर गांव में आसपास के जलस्तर को भी प्रभावित करने लगा है।

लगभग तीन बीघा क्षेत्रफल में बना यह तालाब गांव की पहचान हुआ करता था। पानी भरा होने की वजह से चारों ओर घास और हरियाली रहती थी, तब मवेशी भी यहां आते थे। गांव वाले मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए तालाब के पानी का ही इस्तेमाल करते थे, लेकिन लोगों की अनदेखी और लापरवाही ने तालाब के वास्तविक स्वरूप को ही निगल लिया।

किनारों पर लोगों ने गांव की गंदगी फेंकना शुरू कर दिया है। कुछ हिस्से पर कब्जे भी हैं, जिसकी वजह से बारिश का पानी तालाब में पहुंचने की बजाय नालियों में बह जाता है। पानी पहुंचने के कोई प्रबंध न होने के कारण तालाब लगभग सूख चुका है। इसका सीधा असर मवेशियों पर पड़ा हे। उनकी चारागाह की जमीन भी खत्म हो रही है। हरी घास न होने की वजह से मवेशियों को चारे के लिए भी परेशानी झेलनी पड़ रही है। जलस्तर गिरने से तालाब के आसपास बने मकानों में हैंडपंप जवाब दे गए हैं। इनका पानी सूख चुका है। अब से पांच-छह साल पहले जो हैंडपंप पानी देत थे, अब उनमें धार नहीं मिल रही है। तालाब की खोदाई पर नहीं दिया गया ध्यान

जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी तालाब के जीर्णोद्धार पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। कागजों में योजनाएं तो खूब बनीं, लेकिन किसी भी योजना का धरातल पर नहीं उतारा गया। पांच वर्षों में जीर्णोद्धार के नाम पर लगभग सात लाख रुपये की धनराशि तालाब पर खर्च की जा चुकी है, लेकिन पानी न पहुंच पाया। कब्जों को खाली कराने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किए गए। तालाब सूखने का असर तो पड़ा है। जलस्तर गिर रहा है। घरों में लगे हैंडपंपों से भी पानी नहीं निकलता है। असल में इसके लिए हम सब भी बराबर जिम्मेदार हैं। किसी ने भी तालाब को लेकर कभी आवाज उठाई ही नहीं। नरेंद्र चंद्रपाल। मवेशियों के लिए पेयजल का संकट बढ़ गया है। गर्मी के दिनों में ज्यादातर मवेशी तालाब के किनारे ही बैठे रहते थे। अब तो उन्हें ट्यूबवेल या हैंडपंपों के पास ले जाना पड़ता है। तालाब सूखने से हरे चारे का संकट भी बढ़ा है। हवलदार कठेरिया।

संकल्प

दोबारा सब कुछ पहले जैसा हो सकता है। हमें इसके लिए प्रयास करने होंगे। बजाय दूसरों पर निर्भर रहने के हमें स्वयं ही तालाब के जीर्णोद्धार को मेहनत करनी होगी। जगदीश प्रसाद कठेरिया।

गांव में नालियों में बहने वाले पानी का रुख तालाब की ओर मोड़ना होगा। इसका फायदा होगा कि तालाब में जलस्तर बढ़ सकता है। इसके लिए गांव वालों को सामूहिक प्रयास करने होंगे।देशराज शाक्य।

यदि तालाब को सुरक्षित करना है तो सबसे पहले हमें तालाब के चारों ओर हरियाली को विकसित करना होगा। वृक्षों की वजह से धूप पानी पर नहीं पडे़गी जिससे वाष्पीकरण भी कम होगा।

उदयपाल।

बारिश के पानी को सहेजने के लिए भी प्रयास जरूरी हैं। गांव के प्रत्येक व्यक्ति को मकान की छत से होकर बहने वाले पानी को जमीन के अंदर तक पहुंचाने के लिए प्रबंध कराने होंगे।

जोगराज सक्सेना।

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