गांव की सरकारें भूली जैविक संपदा की चिता
कोरोना संक्रमण के नाम पर गांव की सरकारें प्रकृति संरक्षण को सहेजना भूल
जासं, मैनपुरी: कोरोना संक्रमण के नाम पर गांव की सरकारें प्रकृति संरक्षण को सहेजना भूल गई तो विभाग भी इस ओर कोई काम नहीं करा पाया। एक साल पहले आए आदेश पर गांवों में जैविक संपदा बचाने की कवायद ही नहीं हुई। जिले की 549 ग्राम पंचायतों में जैव विविधता रजिस्टर बनाने का काम भी कागजों में हो गया, जबकि संयुक्त निदेशक पंचायत ने ग्राम पंचायतों में तत्काल जैव विविधता कमेटी गठित करने का आदेश दिया था।
शासन ने एक साल पहले जैव विविधता को सहेजने के लिए कार्य योजना जिले में भेजी थी। इसका उद्देश्य प्रकृति का संरक्षण करना था, लेकिन जिले में इसे लेकर सुस्ती का आलम ही बना रहा। डीपीआरओ स्वामीदीन ने बताया कि शासन की योजना मिली थी, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से काम नहीं हो सका। अब नई पंचायतों का गठन हुआ है। ग्राम पंचायतों में जैव विविधता कमेटी गठित कराकर रजिस्टर तैयार होगा। रजिस्टर देखते ही पता चलेगा कि गांव में कितनी जैव संपदा मौजूद है।
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इनका होना है चिह्नांकन
ग्राम पंचायतों में मौजूद गाय, बैल, भैंस-भैंसा, कुत्ता, भेड़, बकरी, मुर्गी, सुअर, घोड़ा, गधा, मछली, केंचुआ, दीमक, टिड्ड, चींटी, छिपकली, सांप, बिच्छू, नेवला, गिरगिट, बगुला, टिटहरी, तोता, कौआ, कोयल, बिल्लू, खरगोश, चूहा, बंदर, मधुमक्खी, कबूतर, गिलहरी, लंगूर, गौरेया, गीदड़ समेत तमाम जीव-जंतु चिह्नित होने थे, लेकिन नहीं हो सके। वहीं, गांव में मौजूद तमाम तरह के मित्र और दुश्मन कीटों की पहचान कर उन्हें रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा।
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औषधीय पौधों का होता ब्योरा-
गांवों में किस प्रजाति के पौधे हैं, उसकी जानकारी एकत्र करके रजिस्टर तैयार होना था। इसमें नीम, तुलसी, मदार, पुदीना, भृंगराज, पिपरमिट, मेंहदी, कंघी, घीक्वार, सदाबहार, सतावर, चित्रक और पथरचट्टा, मंडुककर्णी, गिलोय, केवड़ा, हरसिगार यानी तमाम औषधीय पौधों का ब्योरा दर्ज होना था, जबकि जलकुंभी, हाइडिला, जूसिया, लैमना, जंगलीय जलीय पौधे कमल और सिघाड़ा भी नहीं तलाशे गए।