पांच साल पर्दे के पीछे सिमटी रही प्रधानी

कई महिला प्रधान घरों से नहीं निकली। पति ने कामकाज किया। कई महिला प्रधान विकास धनराशि के गोलमाल में भी फंसती रहीं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 05 Mar 2021 03:45 AM (IST) Updated:Fri, 05 Mar 2021 03:45 AM (IST)
पांच साल पर्दे के पीछे सिमटी रही प्रधानी
पांच साल पर्दे के पीछे सिमटी रही प्रधानी

जासं, मैनपुरी: सरकार ने महिलाओं को भले ही आरक्षण देकर गांव की सरकार चलाने की पूरी आजादी दी हो, पर ऐसा नहीं हो पा रहा है। पांच साल पहले प्रधान पद पर जीती महिलाओं में से अधिकांश पर्दे के पीछे ही सिमटी रहीं। ऐसे हालात में इनका कामकाज पति और अन्य स्वजन ही निभाते रहे। कई महिला प्रधानों को विकास राशि में किए गए गोलमाल की वजह से कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा। आगामी चुनाव के लिए शासन ने 186 प्रधान पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए हैं।

दो दशक पहले पंचायती राज की अवधारणा को साकार करने के लिए ग्राम पंचायतों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने का काम तो हुआ, लेकिन यह धरातल पर साकार होता नजर नहीं आया। जिले में वर्ष 2015 में हुए पंचायत चुनाव में 243 महिलाएं प्रधान बनीं। इसमें से चंद तो खुद कामकाज संभालती दिखीं, जबकि अधिकांश का काम प्रतिनिधि बनकर पति-पुत्र या अन्य स्वजन ही संभालते रहे।

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यह फंसी घपले में

जिले में कई महिला प्रधान पांच साल के दौरान विकास राशि में किए गए घपलों की वजह से चर्चित रहीं। एक को तो जेल भी जाना पड़ा। ऐसी प्रधानों में बुर्रा की अंजू कुमारी, जिन्होंने सचिव के फर्जी हस्ताक्षरों से धन निकाला तो मुकदमा हुआ। टिमरख की प्रधान नजरश्री भी घोटाले में फंसी, अधिकार सीज हुए, इनके खिलाफ शौचालय घपले की जांच जारी है। बेवर की ग्राम पंचायत अठलकड़ा की प्रधान कविता देवी को तो फर्जी कामों की वजह से जेल जाना पड़ा, जबकि बरनाहल की ग्राम पंचायत गढि़या जैनपुर प्रधान विनीता देवी भी घपले की वजह से चर्चा में रहीं।

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इन्होंने बनाई पहचान

जिले में वैसे तो कई महिला प्रधानों ने काम से पहचान बनाई, लेकिन कुछ ही महिला प्रधान जिला स्तर पर चमक दिखा सकीं। सुल्तानगंज ब्लाक के गांव आलीपुर खेड़ा की नीतू, बेवर के गांव रामपुर सैदपुर की अनीता देवी, कुरावली के गांव तिमनपुर की नीरज और नगला जुला की रश्मि चौहान ऐसी रहीं, जो विकास के लिए खुद ही दौड़ भरती रहीं।

- आज भी समाज में पुरुष प्रधान बना हुआ है, इसी मानसिकता की वजह से पंचायतों में प्रतिनिधि चुनने वाली महिलाओं को आगे नहीं आने दिया जाता। सरकारी बैठक में ऐसी महिलाओं को बुलाने पर स्वजन बाहर होने की कहकर टालते हैं। पंचायती राज में तो महिलाओं को काम की पूरी आजादी है।

- स्वामीदीन, जिला पंचायत राज अधिकारी।

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इस बार महिलाओं के लिए आरक्षण-

549- ग्राम पंचायतें हैं जिले में

-41- आरक्षित हैं एससी महिला के लिए

-54- आरक्षित है ओबीसी महिला के लिए

-91- आरक्षित हैं महिला के लिए

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