विजयदशमी नहीं, एकादशी को होता है दशानन दहन
जिले में विजयदशमी पर रावण का दहन नहीं होता है। शहर में इस दिन महाराजा तेजसिंह की सवारी निकाली जाती है। जबकि अन्य कस्बों में रामलीला के दूसरे कार्यक्रम होते हैं। शहर में दशानन के पुतले का दहन एकादशी को होता है तो भोगांव में रावण का पुतला करवाचौथ को जलाया जाता है। वहीं अन्य कस्बों में रावण के पुतले का दहन अलग-अलग दिनों में होता है।
जासं, मैनपुरी: जिले में विजयदशमी पर रावण का दहन नहीं होता है। शहर में इस दिन महाराजा तेजसिंह की सवारी निकाली जाती है। जबकि अन्य कस्बों में रामलीला के दूसरे कार्यक्रम होते हैं। शहर में दशानन के पुतले का दहन एकादशी को होता है तो भोगांव में रावण का पुतला करवाचौथ को जलाया जाता है। वहीं, अन्य कस्बों में रावण के पुतले का दहन अलग-अलग दिनों में होता है।
शहर में विजयदशमी के बजाय एकादशी पर रावण दहन की परंपरा तो आजादी से पहले सही चली आ रही है। एक-दो कस्बों में भले ही दशहरा को रावण दहन होता है, लेकिन शहर में एकादशी को दहन की प्राचीन परंपरा है। विजयदशमी के दिन महाराजा तेज सिंह की सवारी के सम्मान में रावण वध नहीं होता। इसके पीछे राजशाही को सम्मान देने की परंपरा जुड़ी हुई हैं।
श्रीरामलीला कमेटी के अध्यक्ष महेश चंद अग्निहोत्री बताते हैं कि रामलीला के आयोजन में रावण दहन का आयोजन एकादशी को ही देखा है। वजह पूछने पर बताते हैं कि विजयदशमी क्षत्रिय समाज का पर्व है। रजबाड़ों के जमाने से शहर में विजयदशमी के दिन राजा की सवारी किला से निकलती है। डेढ़ सौ साल पहले रामलीला शुरू होने के बाद भी इसमें आज तक कोई बदलाव नहीं आया। सालों से चली आ रही रिवाज के पालन में आज भी शहर की ऐतिहासिक रामलीला का शुभारंभ कनागत की एकादशी को गणेश पूजन के साथ होता है।
कस्बों में भी अन्य दिन तय
रामलीला का मंचन शहर समेत तमाम गांव और कस्बों में हो रहा है। करहल में भले ही रावण दहन शुक्रवार को हुआ हो, लेकिन भोगांव में यह करवाचौथ और कुरावली, बेवर आदि कस्बों में अन्य दिन होगा।