जांच रिपोर्ट की देरी से लटकती है कार्रवाई

मौत की मदिरा मिलावटी-नकली शराब के नमूने भेजने के बाद जांच रिपोर्ट को करना पड़ता है इंतजार कोरोना काल में लंबित है तीन दर्जन से अधिक मामले

By JagranEdited By: Publish:Fri, 04 Jun 2021 06:03 AM (IST) Updated:Fri, 04 Jun 2021 06:03 AM (IST)
जांच रिपोर्ट की देरी से लटकती है कार्रवाई
जांच रिपोर्ट की देरी से लटकती है कार्रवाई

जासं, मैनपुरी: अवैध शराब के कारोबार पर अंकुश के लिए कानूनी कार्रवाई सबसे अहम है। परंतु धंधेखोरों को सजा दिलाने की कोशिश में अवैध शराब के नमूनों की जांच बाधा बनती है। पुलिस को जांच रिपोर्ट के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है। हालांकि कच्ची शराब की जांच की व्यवस्था जिला स्तर पर ही है, परंतु इसमें भी एक से दो माह का समय लगता है।

सबसे ज्यादा मुश्किल यूरिया मिश्रित शराब के मामलों की कार्रवाई में आ रही है। इन मामलों में गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज होता है। बरामद शराब के नमूने जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला, आगरा भेजे जाते हैं। इन नमूनों की जांच रिपोर्ट आने में दो से छह माह तक का समय लग जाता है। ऐसे में तब तक कार्रवाई भी लंबित रहती है।

भट्ठी से तैयार शराब बरामद होने पर पुलिस धारा-60 आबकारी अधिनियम के तहत कार्रवाई करती है। बरामद माल को शराब साबित करने के लिए भी जांच की जरूरत होती है। इसके लिए बरामद शराब के नमूने जांच के लिए आबकारी विभाग की प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं। ये प्रयोगशाला जिले में ही है। मगर, यहां से भी जांच रिपोर्ट आने में एक से दो महीने लग जाते हैं। बीते तीन साल में करीब एक हजार मामलों में कार्रवाई हुई है। अनुमान के मुताबिक इनमें से 30 फीसद मामलों में अब तक नमूनों की रिपोर्ट नहीं मिली है। कोरोना काल में जांच और रिपोर्ट पर लगा ब्रेक

कोरोना काल में पुलिस द्वारा जांच के लिए तीन दर्जन से अधिक नमूने आबकारी विभाग की लैब और विधि विज्ञान प्रयोगशाला, आगरा भेजे गए हैं। कोरोना काल के चलते पिछले एक साल के अंदर जांच रिपोर्ट प्राप्त होने की गति में कमी आई है। जुर्म कुबूल कर जुर्माना भरने को रहते हैं तैयार

भट्ठी से बनी अवैध शराब बरामद होने पर धारा-60 आबकारी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती है। ऐसे अधिकतर मामलों में पुलिस आरोपितों को थाने से ही जमानत पर रिहा कर देती है। जब चालान होता है तो अदालत में आरोपित खुद ही प्रार्थना पत्र देकर अपना जुर्म कुबूल कर लेते है। इस आधार पर उन्हें अर्थदंड की सजा सुनाई जाती है। ये मामले अधिकतर लोक अदालत में निस्तारित होते हैं।

chat bot
आपका साथी