फिरंगियों को भगाकर 10 महीने आजाद रहा था जिला

महाराजा तेज सिंह के किले में परास्त करने की योजना बनी थी। अंग्रेज अफसर युद्ध में जान बचाकर फौज सहित आगरा भाग गए थे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 06:00 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 06:00 AM (IST)
फिरंगियों को भगाकर 10 महीने आजाद रहा था जिला
फिरंगियों को भगाकर 10 महीने आजाद रहा था जिला

दिलीप शर्मा, मैनपुरी:

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मैनपुरी भी गुलामी की बेड़ी तोड़ने को मचल उठा था। आजादी के दीवानों के साथ मैनपुरी में तत्कालीन महाराजा तेज सिंह ने फिरंगी फौज को परास्त कर फतह हासिल की थी। फिर पूरे 10 महीने तक अंग्रेज मैनपुरी पर कब्जा नहीं कर पाए थे। झांसी की सेना के साथ मिलकर इस जंग को लड़ा गया था। महाराजा तेज सिंह का किला इस शौर्य की गवाही आज भी दे रहा है।

महाराजा तेज सिंह सन 1851 में मात्र 15 वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठे थे। तब तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके राज्य के 136 गांवों को छीन लिया था। इस बीच अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ तो महाराजा भी अंग्रेजों को खदेड़ने का ताना-बाना बुनने लगे। इतिहासकार एवं साहित्यकार श्रीकृष्ण मिश्रा एडवोकेट ने अपनी पुस्तक मैनपुरी समग्र में लिखा है कि 28-29 जून 1857 को झांसी की फौज मैनपुरी पहुंची। तेज सिंह ने झांसी की फौज के साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला बोल दिया।

सबसे पहले जेल पर धावा बोला गया। राजा तेज सिंह के चचेरे भाई राव भवानी सिंह और उनके समर्थकों ने मोर्चा लिया। अंग्रेज अफसरों के बंगले जला दिए गए। झांसी की फौज ने कोषागार पर कब्जा कर लिया। सुरक्षा कर रहे क्लर्क रिचार्ड, लारेंस अैर डेनोवन को मार डाला गया। तत्कालीन कलक्टर जान पावर, मेजर रैक्स, कैप्टन कैरी और मैक्लोव कालिन आदि मैनपुरी से भागकर आगरा पहुंचे।

29 जून को महाराजा तेज सिंह के किले से मैनपुरी के आजाद होने का एलान कर दिया गया। 30 अप्रैल 1858 को ब्रिगेडियर सीटन और जनरल होजग्रांट व जनरल वालपोल की फौजों ने फिर हमला बोला। महाराजा के चचेरे भाई भवानी सिंह को अपनी ओर मिला दिया था। किले से महाराज को मदद नहीं मिली। ऐसे में महाराजा तेज सिंह को मैदान छोड़ना पड़ा और अंग्रेजों ने 10 माह बाद मैनपुरी को फिर से गुलाम बना लिया। मैनपुरी वासी आज भी महाराजा तेज सिंह की वीरता और देशप्रेम को भूले नहीं हैं।

नाकाम होकर लौटे थे ब्रिगेडियर सीटन

मैनपुरी को वापस जीतने के लिए अंग्रेजों ने सबसे पहले अक्टूबर 1857 में कोशिश की थी। मेजर होपग्रांट की फौज ने मैनपुरी के बाहर डेरा डाला। ब्रिगेडियर सीटन एटा की ओर से टुकड़ी लेकर आगे बढ़ा। महाराजा तेज सिंह ने कुरावली से आगे मोर्चा जमाया। ब्रिगेडियर सीटन ने रास्ता बदला और बन्नदल से सकीट होते हुए पीछे से हमला बोला। इसमें महाराजा तेज सिंह को अपनी आठ तोपों ओर सौ से ज्यादा सैनिकों से हाथ धोना पड़ा, परंतु ब्रिगेडियर सीटन को पराजित होकर पीछे हटना पड़ा था।

तोपचियों की गद्दारी से हारी थी राजा की सेना

अप्रैल 1858 में राजा तेज सिंह की सेना को किले के तोपचियों की गद्दारी के कारण पराजित होना पड़ा था। राजा के भाई राव भवानी सिंह ने तोपचियों को अपनी तरफ कर रखा था। नुमाइश मैदान में जब जंग शुरू हुई तो तोपचियों ने गद्दारी दिखाई और किले की तोपों से सहायता नहीं मिली। देश प्रेम के लिए तेज सिंह ने भुला दी थी दुश्मनी:

झांसी की सेना संग मैनपुरी आजाद कराने से पहले महाराजा तेज सिंह ने कानपुर के नाना पेशवा और फर्रुखाबाद के नवाब तफज्जुल हुसैन से सपंर्क किया। अंग्रेजों से मुकाबले के लिए मदद मांगी। तफज्जुल हुसैन और महाराजा तेज सिंह के बीच पीढि़यों से दुश्मनी चली आ रही थी, लेकिन मातृभूमि के लिए उन्होंने इस दुश्मनी को भुलाकर संधि की थी।

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