महाराजा तेज सिंह ने दिलाई थी मैनपुरी को आजादी

मैनपुरी जासं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जहां पूरे देख में गुलामी की बेड़ियां तोड़ने को संघर्ष हो रहा था वहीं मैनपुरी में इतिहास लिखा गया। महाराजा तेज सिंह ने ब्रितानिया हुकूमत की फौजों को पराजित कर फतह हासिल की थी। झांसी की सेना के साथ मिलकर इस जंग को लड़ा गया। इसके बाद अंग्रेज वापस मैनपुरी कब्जाने को कोशिश करते रहे। पूरे 10 महीने तक वह देशप्रेमियों की बहादुरी से नाकाम होते रहे। बाद में गद्दारों को अपने साथ मिलाकर अंग्रेजों ने मैनपुरी को दोबारा गुलाम बनाया था।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 14 Aug 2020 10:07 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 06:06 AM (IST)
महाराजा तेज सिंह ने दिलाई थी मैनपुरी को आजादी
महाराजा तेज सिंह ने दिलाई थी मैनपुरी को आजादी

जागरण संवाददाता, मैनपुरी: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जहां पूरे देख में गुलामी की बेड़ियां तोड़ने को संघर्ष हो रहा था, वहीं मैनपुरी में इतिहास लिखा गया। महाराजा तेज सिंह ने ब्रितानिया हुकूमत की फौजों को पराजित कर फतह हासिल की थी। झांसी की सेना के साथ मिलकर इस जंग को लड़ा गया। इसके बाद अंग्रेज वापस मैनपुरी कब्जाने को कोशिश करते रहे। पूरे 10 महीने तक वह देशप्रेमियों की बहादुरी से नाकाम होते रहे। बाद में गद्दारों को अपने साथ मिलाकर अंग्रेजों ने मैनपुरी को दोबारा गुलाम बनाया था।

महाराजा तेज सिंह सन 1851 में अपने पिता की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर बैठे थे। उस समय उनकी उम्र बमुश्किल 15 साल थी। इससे पहले ही ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेज सरकार ने 136 गांवों को छीन लिया था। इस बीच देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ तो तेज सिंह भी अंग्रेजों को खदेड़ने का ताना-बाना बुनने लगे। 22 मई को नौवीं पलटन के विद्रोह के बाद पीछे हटने वाले अंग्रेज अफसरों ने मैनपुरी को फिर से नियंत्रण में ले रखा था, परंतु महाराज तेज सिंह और यहां के दूसरे देशप्रेमियों के हौसले बुलंद थे। जून में एटा का विद्रोह मुस्तफाबाद तहसील में फैल गया था। तब अंग्रेजों को मैनपुरी जेल में कैदियों के बगावत करने का भी डर सता रहा था। इतिहासकार एवं साहित्यकार श्रीकृष्ण मिश्रा एडवोकेट ने अपनी पुस्तक मैनपुरी समग्र में लिखा है कि 28-29 जून 1857 को को झांसी की फौज मैनपुरी पहुंची। इसमें 14वीं अनियमित घुड़सवार सेना और 12वीं देसी पलटन शामिल थी। महाराजा तेज सिंह को इसकी भनक पहले ही लग चुकी थी और वह क्रांति की तैयारी किए बैठे थे। तेज सिंह ने झांसी की फौज का स्वागत किया और फिर साथ मिलकर अंग्रेजों पर हमला बोल दिया।

सबसे पहले जेल पर धावा बोला गया, गेट तोड़ दिया गया। राजा तेज सिंह के चचेरे भाई राव भवानी सिंह और उनके समर्थकों ने जेल गार्डों के साथ विरोध किया, परंतु फौज के सामने टिक नहीं सके। जेल के कैदियों ने भी फौज का साथ दिया। इसके बाद अंग्रेजी फौज से संघर्ष हुआ और गोरों को भागना पड़ा। अंग्रेज अफसरों के बंगले जला दिए गए। झांसी की फौज ने कोषागार पर कब्जा कर लिया और वहां की सुरक्षा कर रहे क्लर्क रिचार्ड, लॉरैंस अैर डेनोवन को मौत के घाट उतार दिया। अपनी फौज को हारते देख तत्कालीन कलक्टर जॉन पावर, मेजर रैक्स, कैप्टन कैरी और मैक्लोव कॉलिन आदि मैनपुरी से निकल गए। अंग्रेज अफसरों ने इसके बाद चार दिन शिकोहाबाद में बिताए। ग्वालियर से आई फौज उनकी सुरक्षा में लगी थी।

अंग्रेज अफसरों और फौज के भागते ही 29 जून को मैनपुरी के आजाद होने का ऐलान कर दिया गया। महाराजा ने पूरे मैनपुरी में डुगडुगी पिटवा दी कि अब मैनपुरी अंग्रेजों के आधीन नहीं रही। इसके बाद ब्रिटिश सरकार लगातार तेज सिंह को पराजित करने के लिए षड्यंत्र बुनती रही। फिर 30 अप्रैल 1858 को ब्रिगेडियर सीटन, जनरल होजग्रांट व जनरल वालपोल की फौजों ने हमला बोल दिया। नुमाइश मैदान में युद्ध हुआ, लेकिन युद्ध छेड़ने से पहले ही गोरे अफसरों ने महाराजा के चचेरे भाई भवानी सिंह को अपनी ओर मिला लिया। युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजी सैनिकों ने तीन ओर से हमला बोला। किले से महाराज को मदद नहीं मिली। ऐसे में तेज सिंह को मैदान छोड़ना पड़ा और अंग्रेजों ने 10 माह बाद मैनपुरी को फिर से गुलाम बना लिया था। मैनपुरीवासी आज भी महाराजा तेज सिंह की वीरता और देशप्रेम को भूले नहीं हैं। उनका किला आज भी मैनपुरी में स्थित है।

अक्टूबर में नाकाम होकर लौटे थे ब्रिगेडियर सीटन

मैनपुरी जीतने के लिए अंग्रेजों ने सबसे पहले अक्टूबर 1857 को कोशिश की थी। मेजर होपग्रांट की फौज ने मैनपुरी के बाहर डेरा डाल लिया। इसके बाद ब्रिगेडियर सीटन एटा की ओर से अपनी टुकड़ी लेकर मैनपुरी के लिए चले। योजना थी कि होपग्रांट के साथ मिलकर तेज सिंह को हराया जाएगा। परंतु योजना की भनक लगने पर तेज सिंह ने कुरावली से आगे मोर्चा जमा लिया। इस पर ब्रिगेडियर सीटन ने रास्ता बदला और बन्नदल से सकीट होते हुए तेज सिंह फौज पर पीछे से हमला बोला। यहां भीषण युद्ध हुआ। इसमें राजा तेज सिंह को अपनी आठ तोपों और सौ से ज्यादा सैनिकों से हाथ धोना पड़ा, परंतु ब्रिगेडियर सीटन को पराजित होकर पीछे हटना पड़ा था।

तोपचियों की गद्दारी से हारी थी तेज सिंह की सेना

अप्रैल 1958 में राजा तेज सिंह की सेना को किले के तोपचियों की गद्दारी के कारण पराजित होना पड़ा था। अंग्रेजों की ओर हो चुके भवानी सिंह ने किले के तोपचियों को अपनी तरफ कर रखा था। नुमाइश मैदान में जब जंग शुरू हुई तो तोपचियों ने गद्दारी दिखाई और किले की तोपों से सहायता नहीं मिली।

देशप्रेम के लिए तेज सिंह ने भुला दी थी दुश्मनी

झांसी की सेना संग मैनपुरी आजाद कराने से पहले महाराजा तेज सिंह ने कानपुर के नाना पेशवा और फर्रुखाबाद के नवाब तफज्जुल हुसैन से सपंर्क किया। अंग्रेजों से मुकाबले के लिए मदद मांगी। तफज्जुल हुसैन और महाराजा तेज सिंह के बीच पीढि़यों से दुश्मनी चली आ रही थी, लेकिन मातृभूमि के लिए उन्होंने इस दुश्मनी को भुलाकर संधि की थी।

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