जमाखोरी का खेल, महंगा हो रहा सरसों का तेल

तेल और रिफाइंड की मांग पर इस बार असर दिख रहा है। सरसों की जमाखोरी से तेल के भाव बढ़ गए हैं जिससे नागरिक परेशान हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 05:15 AM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 05:15 AM (IST)
जमाखोरी का खेल, महंगा हो रहा सरसों का तेल
जमाखोरी का खेल, महंगा हो रहा सरसों का तेल

जासं, मैनपुरी: जमाखोरी की वजह से सरसों का तेल महंगा होता जा रहा है। खास बात यह है कि मंडी में सरसों पहुंच ही नहीं रही है। बमुश्किल मंडी में सरसों पहुंचती है तो नीलामी से इसकी बिक्री होती है। फसल महंगी बिक रही है तो तेल भी महंगा होता जा रहा है। 2019-20 में 3200 रुपये कुंतल बिकने वाली सरसों अब 7300 रुपये तक बिक चुकी है। यही कारण है कि 80 रुपये किलो वाले सरसों तेल के दाम दो साल में 180 रुपये किलो तक पहुंच गए।

शहर की नवीन मंडी में जानकारी की गई तो पता चला कि साल में बमुश्किल 50 से सौ कुंतल सरसों की आवक होती है। सरसों खरीदने का क्रय केंद्र नहीं है, इसलिए इसका समर्थन मूल्य भी नहीं है। जो फसल आती है, उसकी नीलामी से बिक्री होती हैं। विगत दिनों पहले 7300 रुपये प्रति कुंतल तक सरसों की बिक्री हो चुकी है। शुक्रवार को सरसों 6800 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बिकी। इस पर जीएसटी और मंडी शुल्क अलग से लगता है। यही वजह है कि सरसों की आवक मंडी में कम हो रही है। क्योंकि किसानों से व्यापारियों ने सीधे फसल खरीदना प्रारंभ कर दिया है। यहां मंडी शुल्क से 100-200 रुपये अधिक देकर फसल खरीदी जाती है तो जीएसटी और मंडी शुल्क बच जाता है। वहीं किसानों को हाथों हाथ रकम मिलती है तो सहूलियत के लिए वह भी सीधे फसल बेच देते हैं। ऐसे में थोड़ी बहुत फसल मंडी में पहुंचती है तो नीलामी में उसकी बोली अधिक लग जाती है। इस बार फसल की पैदावार अच्छी है और क्षेत्रफल भी साढ़े आठ हजार हेक्टेअर रहा है। फिर भी सरसों के भाव बढ़ते ही जा रहे हैं।

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महंगाई का यह है गणित-

शहर के प्रतिष्ठित कारोबारी ने बताया कि मंडियों में 6800 से लेकर 7100 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से सरसों की फसल बिक रही है। इस पर छह फीसद जीएसटी और एक फीसद मंडी शुल्क अलग से लगता है। अगर एक कुंतल सरसों की फसल का तेल निकाला जाए तो 33 किलो तेल निकलता है। दो किलो खल जल जाती है। ऐसे में 65 किलो खल बचती है। अब थोक में 145 रुपये किलो तेल बिक रहा है। इस हिसाब से 33 किलो तेल की कीमत 4785 रुपये बनती है। वहीं 65 किलो खल 28 रुपये किलो के हिसाब से 1820 रुपये की बिक रही है। पेराई 250 रुपये कुंतल है, जबकि लोडिग-अनलोडिग में पांच रुपये किलो का चार्ज लग जाता है। ट्रांसपोर्ट का खर्च अलग से है। यही वजह है कि बाजार में सरसों का तेल महंगा बिक रहा है। कोरोना संक्रमण से पहले 2020 में यही फसल 3200 रुपये प्रति कुंतल बिक रही थी। फुटकर में तो सरसों का तेल 160-170 रुपये किलो तक बिक रहा है। पिछले साल कमजोर फसल थी महंगाई का कारण

जानकारों ने बताया कि पिछले साल फसल का दाना कमजोर हो गया था। ऐसे में एक कुंतल सरसों में बमुश्किल 15 किलो तेल निकला था। कम फसल होने की वजह से मांग बढ़ी। सरसों का तेल भी कम निकला तो महंगाई हो गई, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। कुछ जमाखोरों ने सरसों के तेल को महंगा करने का खेल रचा है। कहीं कोई तेजी नहीं है, मांग भी नहीं है। केवल फसल जमाखोरी के चलते फसल मंडी में नहीं पहुंच रही है। सरसों के तेल महंगा होने का कारण जमाखोरी है। किसान तो कर्ज लेकर खेती करता है। मजबूरन उसे औने- पौने दाम में फसल बेचनी पड़ती है। इसके बाद यह फसल कहां स्टाक हो रही है। प्रशासन को जमाखोरों पर शिकंजा कसना चाहिए, तभी सरसों का तेल सही रेट पर बिक सकेगा।

-घनश्याम सिंह, किसान।

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