खड़े हुए गांधी जी तो सज गई थी सभा, भेंट की 100 रुपये की थैली

शहीद दिवस पर विशेष 20 सितंबर 1929 को पदयात्रा कर मैनपुरी आए थे बापू अंग्रेज हुकूमत ने नहीं दी थी सभा की अनुमति परंतु भीड़ देख हो गए थे बेबस

By JagranEdited By: Publish:Sat, 30 Jan 2021 05:35 AM (IST) Updated:Sat, 30 Jan 2021 05:35 AM (IST)
खड़े हुए गांधी जी तो सज गई थी सभा, भेंट की 100 रुपये की थैली
खड़े हुए गांधी जी तो सज गई थी सभा, भेंट की 100 रुपये की थैली

मैनपुरी, दिलीप शर्मा। भारत की आजादी के महानायक महात्मा गांधी मैनपुरी में भी जागरूकता के प्रेरणा स्त्रोत बने थे। गांधी जब मैनपुरी आए तो अंग्रेज नहीं चाहते थे कि वह लोगों में स्वाधीनता की ललक जगा सकें, इसलिए सभा करने की अनुमति नहीं दी गई थी। परंतु बापू आए तो स्वागत कार्यक्रम ही सभा में तब्दील हो गया। ब्रिटिश हुकूमत के कारिदे हजारों की भीड़ के सामने बेबस हो गए और वंदे मातरम के जयघोषों से आंदोलन की नई भावना का संचार हुआ।

महात्मा गांधी का मैनपुरी आगमन 20 सितंबर 1929 को हुआ था। इकहरे बदन पर धोती और चादर लपेटे वह पदयात्रा करते हुए मैनपुरी की सीमा में दाखिल हुए थे। उनके आगमन की जानकारी मिलने पर गोरी सरकार भी बेचैन हो गई। अफसरों ने गांधी को जिले में कोई भी सभा न करने का फरमान सुनाया। स्थानीय लोगों को भी इस संबंध में हिदायत दे दी गई थी। स्थानीय लोगों ने जब ज्यादा अनुरोध किया तो मिशन स्कूल (जो अब क्रिश्चियन इंटर कालेज है) में छोटा सा स्वागत कार्यक्रम करने की अनुमति दे दी गई थी। इसके लिए 15 मिनट का वक्त निर्धारित किया गया था। परंतु गांधी के आगमन के साथ ही भीड़ उमड़नी शुरू हो गई थी। इस कार्यक्रम में गांधीजी को 100 रुपयों की एक थैली भेंट की गई। क्रिश्चियन इंटर कालेज और आर्य समाज मंदिर के बीच केवल एक दीवार का फासला था। जब कालेज से निकलकर गांधी जी आर्य समाज मंदिर पहुंचे, तब तक हजारों की संख्या में लोग वहां जुट चुके थे। बापू को प्रणाम करने और उनको एक झलक देखने के लिए लोग मिशन स्कूल की दीवारों, छतों के अलावा आर्य समाज मंदिर में लगे वृक्षों तक पर चढ़ गए थे। पैर रखने तक की जगह नहीं बची थी।

इतिहासकार श्रीकृष्ण मिश्र बताते हैं कि भीड़ की स्थिति देख अंग्रेज सरकार के भी हाथ-पांव फूल गए थे। गोरी सरकार के अफसर आजादी के दीवानों के सामने मूकदर्शक बनकर खड़े हो गए। इसके बाद स्वागत कार्यक्रम सभा में तब्दील हो गया। गांधीजी कुछ कहते, उससे पहले उत्साही भीड़ वंदे मातरम का जयघोष करने लगी। जयघोष इतना तीव्र हो गया कि खुद गांधीजी को लोगों को शांत करना पड़ा। इसी मंदिर परिसर में गांधीजी ने जिलेवासियों से अहिसा के जरिए आजादी के आंदोलन से जुड़ने की अपील की। कार्यक्रम को चंद मिनटों का समय देने वाली गोरी सरकार के कारिदे भी दो घंटे तक चली इस सभा में खामोश खड़े रहे। सभा के बाद महात्मा ने मंदिर परिसर में ही रात्रि विश्राम किया था और अगले दिन गतंव्य के लिए रवाना हो गए थे। टूट गई थीं जातीय भेदभाव की बेड़ियां

इतिहासकार श्रीकृष्ण मिश्र बताते हैं कि महात्मा गांधी का मैनपुरी आगमन यहां फैले जातीय भेदभाव को खत्म करने की भी वजह बना था। तब मैनपुरी में सवर्ण और दलित वर्ग के बच्चों के लिए अलग-अलग स्कूल होते थे। गांधीजी को यह जानकारी मिल गई थी। आर्य समाज मंदिर पर हुए कार्यक्रम में उन्होंने इसी कुरीति पर जिक्र किया। कहा था कि यदि छुआछूत से आप लोगों ने जंग न जीती तो भारत माता की आजादी की लड़ाई नहीं जीत पाऊंगा। तब मैनपुरी निवासी शंभूदयाल शुक्ला उठ खड़े हुए और इस दाग को मिटाने का प्रण लिया। उनके साथ मौजूद भीड़ भी एक सुर हो गई। बाद में एकजुट हो सवणरें ने खुद ही दलितों के लिए अलग से बने विद्यालयों को ढहा दिया। उनके बच्चों के दाखिले भी सवणरें के स्कूलों में करा दिए गए थे।

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