दशलक्षण पर्व शुरू, मंगल यात्रा निकाली

मैनपुरी जासं। शहर के मुहल्ला कटरा स्थित अजितनाथ जिनालय में प्रतिज्ञा परीक्षा और प्रेक्षा माताजी के सानिध्य में विशेष उत्साह के साथ दस लक्षण पर्व प्रारम्भ हुआ। शुक्रवार सुबह त्रय माताजी के सानिध्य में अजितनाथ जिनालय से पारस नाथ उपवन मंदिर के लिए मंगल यात्रा निकाली गई । वहाँ से वापस होकर श्री अजितनाथ जिनालय में भक्ति की गई।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 11 Sep 2021 06:58 AM (IST) Updated:Sat, 11 Sep 2021 06:58 AM (IST)
दशलक्षण पर्व शुरू, मंगल यात्रा निकाली
दशलक्षण पर्व शुरू, मंगल यात्रा निकाली

जासं, मैनपुरी: शहर के मुहल्ला कटरा स्थित अजितनाथ जिनालय में प्रतिज्ञा, परीक्षा और प्रेक्षा माताजी के सानिध्य में विशेष उत्साह के साथ दस लक्षण पर्व प्रारम्भ हुआ। शुक्रवार सुबह त्रय माताजी के सानिध्य में अजितनाथ जिनालय से पारस नाथ उपवन मंदिर के लिए मंगल यात्रा निकाली गई । वहाँ से वापस होकर श्री अजितनाथ जिनालय में भक्ति की गई।

दस लक्षण महापर्व के शुभारंभ पर दस लक्षण महा मंडल विधान का आयोजन किया गया, जिसमें आज के उत्तम क्षमा धर्म के विधान के सौधर्म इंद्र रमेश चंद्र, सरिता जैन को सौभाग्य प्राप्त हुआ। मंगल यात्रा के बाद श्री अजितनाथ जिनालय में ध्वजारोहण, विशेष शांतिधारा रमेश चन्द्र परिवार ने की और सबके मंगल की कामना की इसके बाद नित्य पूजा की गई। विशेष रूप से सोलह कारण पूजा पंचमेरू पूजा और दस लक्षण पूजा की गई। उसके बाद दस लक्षण महापर्व के तहत शुक्रवार उत्तम क्षमा धर्म का संगीतमय विधान किया गया। इस अवसर पर त्रय माता जी के सानिध्य में विशेष शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया है, जिसमें 80 से ज्यादा लोग भाग ले रहे है। प्रतिज्ञा श्री माता जी ने उत्तम क्षमा धर्म पर प्रवचन देते हुए कहा कि क्रोध हमें छोटा बनाता है। वही क्षण होता है, जो हमें उन्नति के पथ पर चलते हुए आचरण के उच्च शिखर पर पहुंच जाते है, इसलिए क्रोध नहीं करना चाहिए। जीवन में परिवर्तन करना है तो क्रोध नहीं करना ही उत्तम मार्ग है। क्षमा ही एक ऐसा ही अंग है, जिससे जीवन का हर अंग प्रफुल्लित हो जाता है। दु‌र्व्यवहार सहन करने वाला क्षमा का अवतारी: विहसंत सागर

संवाद सूत्र, करहल: कस्बा के जैन मंदिर नसिया में विराजमान जैन मुनि विहसंत सागर महाराज ने शुक्रवार को सुबह के समय धर्म सभा में क्षमा धर्म के बारे में बताया। जैन मुनि ने कहा कि जो सभी के दु‌र्व्यवहार को सहन करने में समर्थ होता है, वह क्षमा का अवतारी कहलाता है।

जैन मुनि ने कहा कि क्रोध की बात होने पर जिसे क्रोध न आए तो ये क्षमा कहलाता है। उन्होंने कहा, जिससे हमें वात्सल्य और प्रेम भाव होता है, उसके दु‌र्व्यवहार को भी प्रेम से सह लेते हैं। जिससे द्वेष होता है, उसके थोड़े से प्रतिकूल व्यवहार को भी हम नहीं पचा पाते हैं। अगर हृदय में प्रेम बढ़ाओगे तो मन में क्षमा स्वयं अवतरित हो जाएगी। अगर मनुष्य ये प्रेम संसार के प्रत्येक जीव से रखेगा तो उसका भव सुधर जाएगा।

जैन मुनि ने कहा कि हमने पर्यूषण पर्व को दस दिन का धर्म मान लिया है। अगर, हम पर्यूषण पर्व को दस दिन का मनाएंगे तो यहां के यहीं रह जाएंगे। पर यदि पर्यूषण को अपनी हर सांस में बिठा लेंगे, तो यहां से सिद्धालय पहुंच जाएंगे। इससे पहले सुबह सात बजे श्री जी का अभिषेक और शांतिधारा हुई। तत्पश्चात सैकड़ों महिला एवं पुरुषों ने सामूहिक पूजन का संगीत के साथ आनन्द लिया। सांध्य काल में गुरु भक्ति और बालिका मंडल द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।

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