बजट से जिले के उद्योगों को संजीवनी की दरकार

मैनपुरी जासं। सूबे में भले ही भाजपा सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने का दावा कर रही है लेकिन जिले में उद्योग वेंटीलेटर पर हैं। हर साल उद्योग बंद होते जा रहे हैं। ऐसे में बचे उद्योगों को संजीवनी की दरकार है तो रोजगार के लिए कृषि आधारित उधोग की खास तौर पर जरूरत है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 20 Feb 2021 06:33 AM (IST) Updated:Sat, 20 Feb 2021 06:33 AM (IST)
बजट से जिले के उद्योगों को संजीवनी की दरकार
बजट से जिले के उद्योगों को संजीवनी की दरकार

जासं, मैनपुरी: सूबे में भले ही भाजपा सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने का दावा कर रही है, लेकिन जिले में उद्योग वेंटीलेटर पर हैं। हर साल उद्योग बंद होते जा रहे हैं। ऐसे में बचे उद्योगों को संजीवनी की दरकार है तो रोजगार के लिए कृषि आधारित उधोग की खास तौर पर जरूरत है।

एक-दो नहीं, बल्कि कई सालों से जिले में उद्योग लगाने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। पहले यह काम समाजवादी पार्टी ने किया था, अब भाजपा प्रयास कर रही है। पूर्व सरकार में बंद हो चुके उद्योगों को फिर से चालू करने को रिपोर्ट भी मांगी गई, लेकिन ये कवायद फाइलों के ढेर में दबकर रह गई है। हाल ये हुआ कि न तो जिले में कोई बड़ा उद्योग लगा और न पुराने उद्योगों को आर्थिक मदद मिल सकी। सरकारी बेरुखी का ही नतीजा है कि जिले में वर्ष 2005 में 84 धान मिल थीं, जिनमें से वर्ष 2010 तक 40 की सांसें थम गईं। वर्ष 2010 से अब तक 35 से ज्यादा मिलें और बंद हो गईं। अब सिर्फ नौ धान मिलें ही बची हैं। यही हाल जिले की फ्लोर मिलों का है। 19 में से पांच बंद हो चुकी हैं। 14 फ्लोर मिल चल रही हैं, लेकिन उनमें भी आधे से अधिक की हालत नाजुक है। सरकारी खरीद बंद होने से टूटी आस

पहले आटा और धान मील के उत्पादन की सरकार खुद ही खरीदारी करती थी, जिसे दस वर्ष पूर्व बंद कर दिया गया। सरकारी खरीद बंद होने से मिलें बाजार के उतार-चढ़ाव में फंस गईं। यही कारण रहा कि एक-एक कर मिलें बंद होती गईं। ओडीओपी को मदद की दरकार

जिले के हस्तशिल्प से जुड़े जरी के काम को प्रदेश सरकार ने एक जनपद-एक उत्पाद में शामिल तो जरूर किया है, लेकिन बेहतर संजीवनी अभी तक नहीं मिल सकी है। कृषि उद्योग वक्त की जरूरत है। मैनपुरी में आलू, लहसुन और प्याज खूब पैदा होता है। धान पैदा करने का भी काम दूसरे जिलों से ज्यादा ही होता है। ऐसे में प्रदेश सरकार कृषि आधारित उद्योग लगाकर रोजगार के साधन तैयार कर सकती है। 100 साल से चल रहा पलायन

जिले में रोजगार के साधन शुरू से ही कम रहे हैं। रेल और सड़क मार्ग से कटा यह जिला आज तक रोजगार की आस में है। यहां करीब 100 साल से रोजगार को पलायन चल रहा है। यहां के युवा रोजगार के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, कानपुर, मध्यप्रदेश, राजस्थान गुजरात और तमिलनाडु तक जाते हैं। क्या कहते हैं उद्योगपति

जिले में औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। अगर कृषि विभाग किसानों को वैज्ञानिक तकनीक से खेती के लिए प्रेरित कर अच्छी किस्म का धान और आलू पैदा कराने लगें, तो काफी लाभ हो सकता है, क्योंकि जिले में सबसे खराब धान और आलू का उत्पादन हो रहा है।

सुनील अग्रवाल

जिस तरह दुग्ध उत्पादन बढ़ाने को सरकार पशुपालकों को ब्याज मुक्त ऋण दे रही है। ठीक वैसे ही उद्योग लगाने वालों को अगर सरकार ब्याज मुक्त ऋण की व्यवस्था कर दे तो जिले का औद्योगिक विकास हो सकता है।

नकुल सक्सेना

जिले में आलू उत्पादन भारी तादाद में होता है। सरकार को आलू संबंधित फैक्ट्री लगा कर रोजगार के साधन तैयार करने चाहिए, जिससे युवाओं का पलायन रुक सके।

सुभाष यादव मैनपुरी के किसान लहसुन और प्याज बहुतायत पैदा करते हैं। भोगांव में लहसुन फैक्ट्री लगाने का प्रयास भी हुआ था, लेकिन कोई कारगर काम नहीं हो सका। इससे भी रोजगार की काफी संभावना है।

सिधु अरोरा

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