एकता में रहने की मिली प्रेरणा
महोबा मेरे पिता घासीराम चौरसिया काफी खुशमिजाज और सरल स्वाभाव के थे। भगवान के प्रति बहु
महोबा : मेरे पिता घासीराम चौरसिया काफी खुशमिजाज और सरल स्वाभाव के थे। भगवान के प्रति बहुत आस्थावान थे। और प्रमुख पर्वों पर समाज के सभी लोगों के साथ अनुष्ठान आदि भी करते थे। वह एक व्यापारी होने के साथ धार्मिक कार्यों में भी बराबर हिस्सेदारी रखते थे। मुहल्ले के सभी के दुख दर्द में साथ खड़े रहते। जरूरतमंदों की मदद करना उन्हीं से सीखा है। पिता हमेशा परिवारीजनों से कहते थे कि एक होकर रहो, ताकि समाज में बेहतर संदेश जाए। वह हमेशा लड़ाई झगड़े से दूर रहते हुए शांति पसंद व्यक्ति थे। समाजसेवा के लिए हमेशा तैयार रहते। भूखों को भोजन कराना, निर्धनों को जरूरत के अनुसार मदद करना कभी नहीं भूलते। उन्होंने यही हमेशा सीख दी कि दीन दुखियों और असहाय लोगों की मदद से पीछे मत हटो। आज उनकी बताई सीख जीवन में बहुत काम आ रही है।
- राकेश चौरसिया, व्यापारी, महोबा