छजमनपुरा का नाम बदलकर रखा जाए मुंशी प्रेमचंद वार्ड
जासं महोबा गोदान गबन कर्मभूमि सोज-ए-वतन सहित तमाम रचनाओं से ख्याति पा चुके उपन्यास सम्राट
जासं, महोबा : गोदान, गबन, कर्मभूमि, सोज-ए-वतन सहित तमाम रचनाओं से ख्याति पा चुके उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर बुंदेली समाज संयोजक तारा पाटकर ने डीएम सत्येंद्र कुमार को ज्ञापन सौंपा। मांग की गई कि शहर के जिस छजमनपुरा वार्ड में रहकर वे नवाब राय से मुंशी प्रेमचंद बने, उस वार्ड का नाम उनके नाम पर किया जाए।
कहा कि 1880 में वाराणसी के लमही गांव में जन्मे मुंशी प्रेमचंद का महोबा से गहरा नाता रहा है। उनका मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव था लेकिन सरकारी नौकरी में होने की वजह से वे नवाब राय नाम से लेखन कार्य करते थे। महोबा में आकर वे नबाव राय से मुंशी प्रेमचंद बन गए। महोबा उनके साहित्यिक सफर का सबसे महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। महोबा में उनकी एक भव्य प्रतिमा भी लगना चाहिए। प्रेमचंद महोबा में 1909 से लेकर 1914 तक रहे। वे शिक्षा विभाग में अफसर थे। यहीं उन्होंने अपनी किताब सोज-ए-वतन लिखी जो तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत को नागवार गुजरी। नाराज अंग्रेजी हुकूमत ने न केवल सोज-ए-वतन की प्रतियां जलवा दी बल्कि प्रेमचंद को नवाब राय के नाम से लिखने पर भी प्रतिबंधित कर दिया। अपने शुभचितकों की राय पर उन्होंने महोबा में मुंशी प्रेमचंद के नाम से कहानियों व उपन्यास लिखने लगे।
उन्होंने बताया कि प्रेमचंद ने 15 उपन्यासों सहित 300 से ज्यादा रचनाएं लिखी। उनकी रचनाओं से प्रभावित होकर बंगाल के मशहूर साहित्यकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट की उपाधि प्रदान की। उनके अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र को पुत्र अमृत लाल ने पूरा किया और कलम के सिपाही नाम से प्रेमचंद की जीवनी भी लिखी। सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि महोबा के छजमनपुरा में जिस घर में वे रहते थे, वह घर अब पूरी तरह से जमींदोज हो चुका है।