विद्यार्थियों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास करना जरूरी
वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति अनवरत एक दिशा में गहन परिश्रम करता है। वह हार-जीत की परवाह किए बिना निरंतर आगे बढ़ता है। उसकी सोच सकारात्मक होती है। कुछ लोग अपने कार्य में इतने तल्लीन रहते हैं कि मुख्य धारा में आते ही नहीं इन्हें हम जान ही नहीं पाते क्योंकि ये नाम के नहीं काम के शौकीन होते हैं।
महराजगंज: विद्यार्थियों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास करना जरूरी है। इससे जीवन में होने वाली घटनाओं के कारणों को तार्किक आधार पर जानने में मदद मिलेगी और अंधविश्वास को दूर किया जा सकता है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति हर विषय, मुद्दे व तथ्य पर तार्किकता से सोचता है और सूक्ष्म विश्लेषण करता है। ये हर मुद्दे को बारीकी से समझना चाहते हैं और बिना गहन अध्ययन, विश्लेषण के कोई दावे नहीं करते। इनके तथ्य प्रमाणिक व प्रयोग सिद्ध होते हैं। यह बातें जीएसवीएस इंटर कालेज प्रधानाचार्य विजय बहादुर सिंह ने जागरण की संस्कारशाला में कही।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति अनवरत एक दिशा में गहन परिश्रम करता है। वह हार-जीत की परवाह किए बिना निरंतर आगे बढ़ता है। उसकी सोच सकारात्मक होती है। कुछ लोग अपने कार्य में इतने तल्लीन रहते हैं कि मुख्य धारा में आते ही नहीं, इन्हें हम जान ही नहीं पाते, क्योंकि ये नाम के नहीं काम के शौकीन होते हैं। ये लोग धार्मिक बातों को भी तार्किकता की कसौटी पर परखना चाहते हैं। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है और सोचने की शक्ति ही उसे एक दूसरे से अलग करती है। एक ही वस्तु को लोग अलग-अलग नजरिये से देखते हैं। एक छोटा बच्चा खिलौने से खेलता है तो दूसरा उसे तोड़कर उसका सूक्ष्म अवलोकन करता है। उन्होंने कहा कि भारतीयों की सोच प्राचीन काल से ही क्रिएटिव और वैज्ञानिक रही है और कई पुरानी धारणाएं व तथ्य आज भी सत्य प्रतीत होते हैं। कई प्रथा व परंपराओं के वैज्ञानिक आधार हैं। कई प्राचीन औषधियां आज भी आयुर्वेद में पाई जाती हैं। कोरोना काल में भी पूरा विश्व हमारी तरफ आयुर्वेद के लिए देख रहा था, हमने अपने आप को साबित भी किया और सराहना भी पाई।