मनुष्य के कर्मों में ही निहित है भोग व मोक्ष: शंकराचार्य

कर्म की व्याख्या करते हुए जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि धर्म पालक ठाकुरजी को नहलाने और भोग लगाने के लिए स्नान करते हैं जबकि भौतिकतावादी अपनी थकान मिटाने और शरीर की मैल दूर करने के लिए। दोनों यही अंतर है। धर्म का पालन करने वाले घर में बेटी पैदा होने पर उसे जगदम्बा का स्वरूप मानते हैं। विवाह के बाद स्त्री को धर्मपत्नी और पुत्र को बालगोपाल कहते है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 01:32 AM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 01:32 AM (IST)
मनुष्य के कर्मों में ही निहित है भोग व मोक्ष: शंकराचार्य
मनुष्य के कर्मों में ही निहित है भोग व मोक्ष: शंकराचार्य

महराजगंज: पुरी पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि भोग और मोक्ष मनुष्य के कर्म में निहित हैं। आधुनिकता की चकाचौंध में लोग धर्म और ईश्वर से विमुख हो रहे हैं। हमें यह ध्यान रखना होगा कि इन दोनों के माध्यम से ही मोक्ष संभव है। जगदगुरु शंकराचार्य बुधवार को फरेंदा कस्बे में चरणपादुका शोभायात्रा के बाद एक मैरिज हाल में आयोजित धर्म सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।

कर्म की व्याख्या करते हुए जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि धर्म पालक ठाकुरजी को नहलाने और भोग लगाने के लिए स्नान करते हैं, जबकि भौतिकतावादी अपनी थकान मिटाने और शरीर की मैल दूर करने के लिए। दोनों यही अंतर है। धर्म का पालन करने वाले घर में बेटी पैदा होने पर उसे जगदम्बा का स्वरूप मानते हैं। विवाह के बाद स्त्री को धर्मपत्नी और पुत्र को बालगोपाल कहते है। यह धर्म पालन की सोच है। इससे विरत या भौतिकतावादी सोच से समाज का भला संभव नहीं है। भौतिकतावादी व्यवस्था कभी न कभी समाज को विनाश के पथ पर ले जाएगी। सभी को ध्यान रखना चाहिए कि केवल आत्मा बचती है, शेष सब नश्वर है। इससे पूर्व जगदगुरु शंकराचार्य की चरण पादुका शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें श्रद्धालु उमड़ पड़े। शोभायात्रा में पुरी शंकराचार्य भी विराजमान रहे। शिव और विष्णु में कोई अंतर नहीं

शोभायात्रा के पूर्व दोपहर में महदेवा बुजुर्ग गांव में रघुवंश चौधरी के आवास पर शंकराचार्य ने श्रद्धालुओं की जिज्ञासा शांत की। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु और शंकर में कोई अंतर नहीं है। एक अन्य प्रश्न के जवाब में कहा कि सज्जन व्यक्ति अकेले चलता है। उसे भी संगठन में रहना चाहिए ताकि दुर्जन डरे।

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