कभी भी दायर कर सकते हैं घरेलू हिंसा का केस, जानिए क्या है हाई कोर्ट लखनऊ बेंच की विशेष टिप्पणी
यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने त्रिलोचन सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ की ओर से संदर्भित प्रश्नों के जवाब देते हुए पारित किया। एकल पीठ ने दो विधिक प्रश्नों को तय करने के लिए मामला संदर्भित किया था।
लखनऊ, विधि संवाददाता। एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने घरेलू हिंसा अधिनियम के मुकदमों को दाखिल करने की समय सीमा को लेकर स्पष्ट किया कि ये मुकदमे सिविल प्रकृति के होते हैैं, अत: कभी भी दाखिल किए जा सकते हैं तथा उन पर संबधित अदालत निर्णय लेगी। मियाद अधिनियम घरेलू हिंसा अधिनियम के मामलों में लागू नहीं होता क्योंकि ये केस आपराधिक प्रकृति के नहीं होते हैं।
यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने त्रिलोचन सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए एकल पीठ की ओर से संदर्भित प्रश्नों के जवाब देते हुए पारित किया। एकल पीठ ने दो विधिक प्रश्नों को तय करने के लिए मामला संदर्भित किया था। पहला प्रश्न था कि काफी समय बीतने के बाद घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दाखिल मुकदमा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 के तहत कालातीत माना जाएगा अथवा नहीं। दो सदस्यीय पीठ ने इस पर विस्तार से उत्तर देते हुए कहा कि चुूंकि धारा 12 के तहत दाखिल मुकदमा अनुतोष की प्राप्ति के लिए होता है इसलिए यह सिविल प्रकृति का मुकदमा होता है। लिहाजा ऐसे मुकदमे पर दंड प्रक्रिया संहिता लागू नहीं होती।
वहीं, दूसरा प्रश्न था कि यदि इसे सिविल प्रकृति का माना जाए तो क्या मियाद अधिनियम के तहत तीन वर्ष के भीतर ही मुकदमा दाखिल होना चाहिए अथवा किसी भी समय इसे दाखिल किया जा सकता है। इसका उत्तर देते हुए कोर्ट ने कहा कि विधायिका ने ऐसे मुकदमों पर कोई मियाद तय नहीं की है। इसलिए मियाद अधिनियम इन मुकदमों पर लागू नहीं होगा।