World Rabies Day: कुत्ता और बंदर के काटने पर लापरवाही हो सकती है जानलेवा, समय पर कराएं इलाज

World rabies day रेबीज एक वायरस जनित रोग है इसकी वजह से मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन हो जाती है। प्रतिवर्ष राजधानी में कई दर्जन लोगों की मौत हो जाती है। बाद में इलाज करवाने पर इसकी कोई उपयोगिता नहीं रहती है इसलिए समय रहते वैक्सीन लगाना है जरूरी।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 06:30 AM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 11:45 AM (IST)
World Rabies Day: कुत्ता और बंदर के काटने पर लापरवाही हो सकती है जानलेवा, समय पर कराएं इलाज
कुत्ते के काटने पर दस दिन तक उसकी निगरानी करें।

लखनऊ, जेएनएन। World Rabies Day: रेबीज एक विषाणु जनित रोग है। इसके कारण इंसेफेलाइटिस यानी मस्तिष्क में सूजन हो सकती है। इसके बाद बुखार के साथ काटने के स्थान पर झुनझुनी जैसे प्रारंभिक लक्षण दिखते हैं। रेबीज से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं। लेकिन इसे समय पर नहीं लगाया गया तो बाद में इसकी कोई उपयोगिता नहीं रह जाती। एक बार रेबीज होने के बाद मौत सुनिश्चित हो जाती है।

इन जानवरों के काटने से ख़तरा:

केजीएमयू में संक्रामक रोगों के विभागाध्यक्ष डॉ डी हिमांशु कहते हैं कि कुत्ता, बंदर, बिल्ली लोमड़ी, चूहा, चमगादड़ व अन्य स्तनधारी जंतुओं में किसी के भी काटने पर रेबीज हो सकता है। सर्वाधिक खतरा कुत्ता, बंदर बिल्ली, लोमड़ी व चमगादड़ इत्यादि से होता है। इसलिए कोई भी स्तनधारी जानवर काटे तो तत्काल वैक्सीनेशन कराना चाहिए। अगर घाव गहरे हों तो इम्यूनोग्लोबिन का इंजेक्शन भी 24 से 36 घंटे में लग जाना चाहिए। अगर घाव गहरे हैं तो सिर्फ़ वैक्सीनेशन से काम नहीं चलता। संक्रमण पनपते ही यह सीधे मस्तिष्क पर वार करता है। केजीएमयू में प्रतिवर्ष रेबीज से करीब 60 मौतें हो जाती हैं। वहीं वैक्सीनेशन के लिए सैकड़ों मरीज रोजाना आते हैं। इसी तरह सिविल बलरामपुर व अन्य अस्पतालों में सैकड़ों मरीज रोजाना कुत्ता और बंदर आदि के काटने के आते हैं।  डॉ हिमांशु बताते हैं कि रेबीज हो जाने पर मरीज की मौत 100 फीसद निश्चित होती है। पूरी दुनिया में अभी तक छह-सात मामले ऐसे हुए हैं, जिसमें मरीज की जान बच सकी है।

तंत्रिका तंत्र पर करता है हमला:

सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आशुतोष दुबे कहते हैं कि कुत्ता, बंदर, बिल्ली या चमगादड़ जैसे स्तनधारियों के काटने पर वैक्सीनेशन में लापरवाही पीड़ित के लिए जानलेवा साबित हो जाती है। क्योंकि रेबीज संक्रमित जानवर के काटने से इसका वायरस पेरीब्रल नर्व के माध्यम से सीधे तंत्रिका तंत्र (सीएनएस)तक पहुंच जाता है। इसके बाद यह वायरस दिमाग पर हमला करता है। ऐसी स्थिति में रोगी के मस्तिष्क की मांसपेशियों में सूजन व स्पाइनल कार्ड में समस्या खड़ी हो जाती है। धीरे-धीरे मरीज के लक्षण इंसेफ्लाइटिस के समान हो जाते हैं। फलस्वरूप वह कोमा में चला जाता। बाद में मरीज की मौत हो जाती है। 

प्रमुख लक्षण

इसका संक्रमण होने पर रोगी हाइड्रोफोबिया, फोटोफोबिया, थरमोफोबिया व एयरोफोबिया से ग्रसित हो जाता है। यानी उसे हवा, पानी व अपनी फोटो देखने पर आक्रामकता आती है। रोगी रोशनी से भागने लगता है। गर्मी में होने पर असहज महसूस करता है। तेज हवा भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। भूख कम हो जाती है। मरीज खाना-पीना बंद कर देता है। मुंह से हांफने की आवाज व लार टपकने लगती है। बुखार, सिर दर्द, उल्टी, चक्कर आना व शारीरिक कमजोरी होने लगती है।

बरतें यह सावधानी

डॉ डी हिमांशु कहते हैं कि कुत्ता, बिल्ली व बंदर आदि स्तनधारी के काटने पर घाव को बहते पानी से 15-20 मिनट तक धुलना चाहिए। घाव पर पिसी मिर्ची, मिट्टी का तेल, जला मोबिल, चूना, नीम की पत्ती व एसिड आदि का इस्तेमाल न करें। ज्यादा घाव होने पर इम्यूनोग्लोबिन व एंटी रेबीज का इंजेक्शन जरूर लगवाएं। कुत्ते के काटने पर दस दिन तक उसकी निगरानी करें। यदि वह जिंदा है तो संक्रमण का खतरा ज्यादा नहीं है। वैक्सीन के डोज का समय-कुत्ता काटने के तुरंत बाद रेबीज का पहला इंजेक्शन लगवा लें। दूसरी डोज तीसरे दिन-तीसरी डोज सातवें दिन-चौथी डोज 14 वें दिन-पांचवी डोज 28वें दिन

यहां लगवाएं वैक्सीन

बलरामपुर, सिविल, लोहिया अस्पताल, केजीएमयू, भाऊराव देवरस, आरएलबी में रेबीज की एआरवी वैक्सीन लगाई जाती है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के पीड़ितों के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एआरवी के वैक्सीनेशन की व्यवस्था की मुफ्त में व्यवस्था है।

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