यूपी में 70 हजार लोगों में एचआइवी संक्रमण की आशंका, असुरक्षित संबंध से रहें सावधान
अनजाने व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाने से पहले सतर्कता और सुरक्षा जरूरी है। उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के अनुसार सत्तर हजार से अधिक लोगों के एचआइवी से ग्रसित होने की आशंका है। हालांकि उन लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं है।
लखनऊ, रामांशी मिश्रा। अनजाने व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाने से पहले सतर्कता और सुरक्षा जरूरी है। उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के अनुसार सत्तर हजार से अधिक लोगों के एचआइवी से ग्रसित होने की आशंका है। हालांकि उन लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं है।
सूबे में 93000 एचआइवी ग्रसित लोग विभिन्न 50 एआरटी केंद्रों पर पंजीकृत हैं और इलाज करा रहे हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रदेश की अनुमानित एचआइवी संक्रमित जनसंख्या एक लाख साठ हजार के करीब है। यह कहना है राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी के अधिकारियों का। विशेषज्ञ कहते है कि यौन संबंध बनाने में सावधानी जरूरी है। जब आप दूसरे व्यक्ति के एचआइवी स्टेटस से अनजान हों या आपके एक से अधिक व्यक्तियों से यौन संबंध हों।
उत्तर प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसाइटी (यूपीसैक) की बेसिक सर्विसेज इनचार्ज डॉ प्रीति पाठक ने बताया कि हमारा लक्ष्य 2030 तक एड्स का खात्मा करना है। उत्तर प्रदेश में कुल जनसंख्या में एचआइवी की दर 0.9 फीसद है।
डॉ प्रीति के अनुसार, प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में 50 एआरटी कार्यरत हैं। इसके अलावा एचआईवी की जांच के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में 466 आईसीटीसी केंद्र हैं।
इलाज के लिए एचआईवी से ग्रस्त व्यक्ति को 3 दवाओं को मिलाकर एक गोली का 'फिक्स्ड डोज कांबिनेशन' (एफडीसी) ड्रग दिया जाता है। बच्चों और बड़ों के लिए इनमें लगभग 13 कांबिनेशन ड्रग्स शामिल किए गए हैं।
विभिन्न तरह के हाई रिस्क एचआईवी व्यक्तियों के लिए एड्स नियंत्रण सोसाइटी प्रदेश भर में लगभग 80 गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्यरत है। इस बारे में डॉक्टर पाठक ने बताया कि इन एनजीओ के माध्यम से हम विभिन्न हाई रिस्क समूह जिनमें महिला वर्कर, आईडीयू, ट्रक ड्राइवर प्रवासी मजदूर आदि शामिल हैं, उनके लिए काम करते हैं।
जागरूकता के लिए यूपीसैक एनजीओ के साथ मिलकर विभिन्न हाई रिस्क समूह को काउंसलर और पियर एजुकेटर के साथ मिलकर जागरूक करते हैं। इसके अलावा उनके 'बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन' पर काम किया जाता है। इसके तहत उन्हें बताया जाता है कि वह सुई से नशा न करें। सुई के दुरुपयोग से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। इससे बचने के लिए उन लोगों को विभिन्न ओरल ड्रग दिए जाते हैं।
इसके लिए 'ओपियोइड सब्स्टीट्यूशन सेन्टर' चलाये जाते हैं। इसके अलावा महिला को कंडोम का वितरण किया जाता है और उन्हें इसके उपयोग और सुरक्षा के बारे में बताया जाता है। इसके अलावा सभी लोगों की साल में दो बार इनकी एचआईवी की जांच करवाई जाती है।
डॉ पाठक कहती हैं कि हाई रिस्क समूह होने की वजह से इनमें एसटीआई की दर अधिक होती है। इस वजह से वर्ष भर में चार बार इनकी जांच भी की जाती है।