Vikas Dubey Encounter : दुर्दांत विकास दुबे की मौत के साथ दफन स्याह सियासत के सनसनीखेज राज
Vikas Dubey Encounter दुर्दांत विकास दुबे का एनकाउंटर उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए तो गुडवर्क हो सकता है लेकिन राजनीति से गंदगी के कुछ सफाये की उम्मीदों का दम घुट गया।
लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। दुर्दांत विकास दुबे का एनकाउंटर उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए तो 'गुडवर्क' हो सकता है, लेकिन राजनीति से गंदगी के कुछ सफाये की उम्मीदों का दम घुट गया। करीब तीन दशक में जिस राजनीतिक विषबेल के सहारे ऐसे खूंखार अपराधी का विकास हुआ, उसकी जड़ तो छोड़िए, तना-पत्ता भी हाथ न लग सका। सत्ता पक्ष इंसाफ की दुहाई दे रहा है तो विपक्षी दल एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं। अब सभी की आवाज में पूरा दम है, क्योंकि इन सभी के राजदार विकास को मुंह खोलने का मौका ही नहीं मिला।
विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद विपक्षी दल सपा, कांग्रेस और बसपा ने सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है। वह इसे सरकार का विकास से 'बदला' बताकर एनकाउंटर को सुनियोजित बता रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा पूरे मामले को इस तरफ मोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते कि विकास दुबे को सत्ता पक्ष का संरक्षण था, इसलिए राज खुलने के डर से उसे मार दिया गया।
इसके इतर, भाजपा नेता कई फोटो-वीडियो वायरल कर चुके हैं, जिनमें हत्यारा विकास दुबे या उसकी गैंग के साथी सपा, बसपा नेताओं के साथ नजर आए। कांग्रेस कनेक्शन की भी पुरानी कहानी जोड़ी गई है। दरअसल, आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला तो उसी दिन से चल रहा था, जिस दिन से विकास दुबे ने कानपुर में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों की जान ली। रही बात एनकाउंटर पर सवाल उठाए जाने की, तो शुक्रवार को एक चैनल पर चर्चा में पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना था कि संभवत: ऐसा कोई एनकाउंटर नहीं, जिस पर सवाल न उठे हों। मगर, यह एनकाउंटर थोड़ा अलग है। इसमें ऐसा अपराधी मारा गया है, जो उत्तर प्रदेश में राजनीति के अपराधीकरण या अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण का जीवंत सुबूत था।
चूंकि, इससे पहले 2017 में एसटीएफ द्वारा पकड़े जाने पर वह स्वीकार कर चुका था कि उसकी मदद माननीय करते हैं, इसलिए आमजन को भी आस और इंतजार था कि अबकी विकास दुबे मुंह खोलेगा तो इन आरोप-प्रत्यारोपों के खेल का पटाक्षेप होगा। सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा कि किस दल में उसके कौन-कौन मददगार थे और पुलिस-प्रशासन में भी उसे संरक्षण देने वाले कितने आला अधिकारी थे। मगर, वह नहीं हो सका। खादी और खाकी के शिकंजे में जकड़ा गया राजनीतिपोषित अपराधी विकास खादी और खाकी के गठजोड़ के राज नहीं खोल सका। वर्दी-सदरी के तीन दशक के काले अध्याय पर अंतत: कफन का पर्दा पड़ ही गया।
बता दें कि कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल विकास दुबे का खेल आखिर खत्म हो गया। उसे उज्जैन से कोर्ट में पेशी के लिए लाते वक्त कानपुर शहर से पहले ही सचेंडी थाना क्षेत्र में बेसहारा जानवरों को बचाने के चक्कर में एसटीएफ की कार पलटी तो कुछ पल के लिए पुलिसकर्मी हल्की बेहोशी की हालत में आ गए। इस दौरान विकास ने एक इंस्पेक्टर की पिस्टल छीन ली और भागने की कोशिश की तो पुलिस ने उसका पीछा किया। विकास के पुलिसकर्मियों पर गोली चलाने के जवाब में एसटीएफ और पुलिस टीम के सदस्यों ने उसे ढेर कर दिया। मुठभेड़ में एसटीएफ के दो जवान भी घायल हुए हैं। इस पांच लाख रुपये इनामी हिस्ट्रीशीटर को गुरुवार सुबह उज्जैन (मप्र) के महाकालेश्वर मंदिर परिसर से गिरफ्तार किया गया था।