UP Corona Crisis: कफनखोरों के चंगुल में पिस रहा सारा प्रदेश : प्लास्टिक का डंडा नहीं, लोहे की लाठी बजाइए
सारा प्रदेश कफनखोरों के चंगुल में पिस रहा है। यह समय ढिलाई का नहीं। पहली और दूसरी लहर के बीच की ढिलाई का परिणाम हम देख रहे हैं और जब तीसरी की आशंका बहुत जोर से जताई जा रही है तो हमारी तैयारी भी उतनी ही सघन होनी चाहिए।
लखनऊ [आशुतोष शुक्ल]। चौक का एक नर्सिंग होम अपने यहां भर्ती मरीजों को जीवनरक्षक दवाएं और इंजेक्शन नहीं देता, लेकिन गोमतीनगर के एक नर्सिंग होम में इलाज करा रहे रोगी के तीमारदारों को वही चीजें बेच देता है...ब्लैक में! यही काम गोमतीनगर का कोई नर्सिंग होम करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसे अपने यहां भर्ती मरीजों को रेट पर ही दवाएं देनी होंगी जबकि दूसरे अस्पताल से आए मरीज पर यह शर्त लागू नहीं होती। अपने मरीज के लिए बिल बनाना पड़ेगा तो चोरी का चोर रास्ता निकाल लिया चोरों ने।
डालीगंज पुल पर अंत्येष्टि सामग्री मिलती है। यहां आप फोन कीजिए और अस्पताल से शव को श्मशान घाट तक पहुंचाने और अंतिम संस्कार की बाकायदा पैकेज डील लीजिए। आमतौर पर पचीस-तीस हजार रुपये में सौदा पटता है। गोमतीनगर का एक बड़ा प्राइवेट अस्पताल मरीज के पहुंचते ही उसकी अदायगी क्षमता के अनुसार दो-तीन लाख रुपये धरा लेता है। मरीज को रसीद दी जाती है अठारह हजार की। क्यों? क्योंकि सरकार ने यह इलाज की अधिकतम दर निर्धारित की है। मरीज शिकायत करे या भीतर भर्ती अपने प्रिय की चिंता करे !
कफन चोर एक मुहावरा है और जिसे जमीन पर उतार दिखाया बागपत के कफन चोरों ने। वे लाशों के कफन और कपड़े चोरी करके एक दुकानदार को देते जो उन्हें फिर बेच देता। लालची काहे करने लगा संक्रमण की फिक्र।लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल से शिकायत आई है कि वहां के कुछ कर्मचारी मृत्यु के बाद मरीजों के फोन और अंगूठियां गायब कर रहे हैं। ऑक्सीजन सिलिंडर की अचानक हुई किल्लत के पीछे एक कारण यह भी था कि वे अमीरों और बड़े अफसरों के घर एडवांस में जमा हो गए थे। एक-एक घर में कई-कई। हाकिम के घर छापा भला कौन मारे।
प्राइवेट अस्पताल आक्सीजन चोरी कर रहे हैं। लखनऊ, आगरा में तो पकड़े भी गए और उन्हें नोटिसें भी थमाई गईं, लेकिन डाकुओं की बिरादरी में डर नहीं बैठ रहा। यह संभव ही नहीं कि ऐसा भ्रष्टाचार बिना सरकारी अमले की मिलीभगत के हो जाए। सांत्वना के शब्द जब अपने अर्थ खो चुके हैं, ढाढस बंधाने में जब जीभ लड़खड़ाती है, दुखियारे को गले लगाने जब उसके पास नहीं जाया जा सकता, मजबूरी जब हर चेहरे पर पढ़ी जा सकती है, तब ऐसे में गली-गली पिशाच निकल आए हैं। मानवता का रक्त पीकर लाशों पर नृत्य करने वाले प्रेत।
पहले से ही बड़ी गाड़ियों में चलने और हवेलियों में रहने वाले इन नवदौलतियों ने कानून को अपने जूतों से दाब दिया है। विधायिका ने चिट्ठियां लिखकर काम चलाया क्योंकि अपवाद छोड़ दें तो अपने वोटरों को वह भर्ती तक नहीं करा पा रही थी। रोने वाले से उम्मीद क्या! तब ऐसे में याद आई उस प्रशासन और पुलिस की जो कहीं दृश्य है और कहीं अदृश्य। याद उन बहादुरों की भी आई जो हर गर्मी गन्ने के रस वालों को पकड़ते हैं और हर दीवाली खोए वालों को।
सारा प्रदेश कफनखोरों के चंगुल में पिस रहा है। यह समय ढिलाई का नहीं। पहली और दूसरी लहर के बीच की ढिलाई का परिणाम हम देख रहे हैं और जब तीसरी की आशंका बहुत जोर से जताई जा रही है तो हमारी तैयारी भी उतनी ही सघन होनी चाहिए। हम संसाधन बढ़ाएं, लेकिन यह भी देखें कि उपलब्ध संसाधनों पर डाका न पड़ने पाए। सख्ती से निर्णय हो और सख्ती से ही लागू हो कि हर नर्सिंग होम के लाइसेंस का नवीनीकरण केवल तभी होगा जब वह अपने यहां ऑक्सीजन प्लांट लगा लेगा।
सेना द्वारा बनाए गए अस्पताल बने रहें। सरकार द्वारा बनाए गए आपातकालीन अस्पतालों को इस बार भंग न किया जाए। उनकी आवश्यकता मार्च तक पड़ने वाली है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाई जाएं। पहले से कराह रहे सरकारी संसाधनों पर और बोझ नहीं पड़ना चाहिए। मानवता के लुटेरे चंद नोटिसों से मानने वाले नहीं। उन पर कड़ी एफआईआर हो और रासुका लगे। सामान्य डाकुओं, माफिया और तस्करों से बड़े अपराधी हैं ये।
हारे हताश लोग हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं, आपके लिए अब लंकाकाण्ड चरितार्थ कर दिखाने का समय आया है। (लेखक दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के राज्य संपादक हैं )