उत्तर प्रदेश राज्यनामाः गठबंधन की डोरी में लगी हैं कई गांठें !

बसपा उत्तर प्रदेश का मजबूत दल है और कांग्रेस छत्तीसगढ़ का। भाजपा को हराने के लिए इन दोनों का साथ अधिक स्वाभाविक होता।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 10:38 AM (IST) Updated:Tue, 25 Sep 2018 02:57 PM (IST)
उत्तर प्रदेश राज्यनामाः गठबंधन की डोरी में लगी हैं कई गांठें !
उत्तर प्रदेश राज्यनामाः गठबंधन की डोरी में लगी हैं कई गांठें !

लखनऊ। आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा अलग - अलग लोगों द्वारा अलग - अलग कारणों से लगाया जा रहा था। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती का छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की विरोधी पार्टी के साथ जाना भविष्य के हर चुनावी समझौते को यदि खारिज नहीं भी कर रहा तो भी उस पर एक सवाल तो खड़ा करता ही है। बसपा उत्तर प्रदेश का मजबूत दल है और कांग्रेस छत्तीसगढ़ का। भाजपा को हराने के लिए इन दोनों का साथ अधिक स्वाभाविक होता।

माना जा रहा है कि बसपा का अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ मेल वहां की दस आरक्षित सीटों को सीधे प्रभावित करेगा जबकि 14 अन्य सीटों पर भी यह असर डाल सकता है। यह संख्या 90 सीटों वाले राज्य में बहुत अहम हो जाती है। हालांकि यह भी सच है कि छत्तीसगढ़ में बसपा का प्रदर्शन अभी तक औसत भी नहीं रहा है , इसलिए इस समझौते को निर्णायक नहीं माना जा सकता। जोगी के साथ मायावती का जाना उत्तर प्रदेश के लिए भी खास हो जाता है। जिस प्रदेश में कांग्रेस मजबूत है जब वह वहां उसके साथ नहीं गईं तो उत्तर प्रदेश में क्यों उसके साथ जाएगी ? जाती भी हैं तो शर्तें किसकी चलेंगी ?

यूपी में यदि कांग्रेस साथ नहीं आती तो क्या केवल सपा से ही बसपा की दोस्ती होगी ? होगी भी या नहीं ? चार दिन पहले मायावती ने फिर दोहराया कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही समझौता होगा। उनका यह कहना था कि अखिलेश यादव समझौते की मुद्रा में आ गए कि वह कम सीटों पर भी तैयार हैं। इसलिए यह तो तय है कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष की अगुवा इस समय मायावती ही हैं। बिसात पर मोहरें वह चल रही हैं और बाकी लोग उनका केवल अनुसरण कर रहे। मायावती वैसे भी अप्रत्याशित निर्णयों के लिए जानी जाती हैं।

पिछले सप्ताह एक और उल्लेखनीय घटना हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के लिए बनारस गए जहां उन्होंने दर्जनों मुहल्लों के नाम गिनाकर अपने साढ़े चार साल के कामों का ब्यौरा दिया। दोनों दिन मोदी एक सांसद के रूप में अधिक दिखे। किसी प्रधानमंत्री का यह कहना साधारण बात नहीं कि वह पाई पाई का हिसाब देने जा रहे हैं। कितने सांसद ऐसा कर सकते हैं। वह समय भी आ ही गया है जब जनता सांसदों से हिसाब मांगेगी। कहने की बात नहीं कि सांसद चाहे जिस दल का हो , उसके पास गिनाने के लिए बहुत कुछ नहीं है। जनता का गुस्सा कम करने का एक पुराना और कारगर तरीका टिकट काटने का भी होता है और इसीलिए अब चर्चा इस बात की अधिक होने लगी है कि कितने सांसदों के टिकट कटने जा रहे हैं।

एक घटना राज्य सरकार के लिए विचारणीय होनी चाहिए। योगी सरकार ने कुछ समय पहले 68,500 शिक्षकों की भर्ती परीक्षा कराई थी। सरकार की इस पहली बड़ी और महत्वाकांक्षी परीक्षा का परिणाम भी आ गया और नियुक्तियां भी होने लगीं कि उसमें धांधली की शिकायतें आनी लगीं। कॉपी बदलने और बार कोड गलत डालने से लेकर नकल तक की शिकायतें बहुत गंभीर थीं। पांच सौ से अधिक अभ्यर्थियों द्वारा की गई शिकायतों की जांच के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति ने भी माना कि गड़बडिय़ां हुईं।

हां , राज्य सरकार ने यह काम अच्छा किया कि बजाय समस्या पर परदा डालने के उसने कॉपियों की स्क्रूटिनी कराने का निर्णय कर डाला। इसलिए अब सभी 1,07,873 कॉपियों की एक सप्ताह में स्क्रूटिनी कर ली जाएगी। फिर इसके बाद क्या होगा ? सच यह है कि उत्तर प्रदेश में हर कक्षा , हर स्तर और हर परीक्षा में नकल कराने वाले सरकार निरपेक्ष तंत्र की पैठ इतनी गहरी है कि कास्मेटिक सर्जरी से उसका कुछ बिगडऩे वाला नहीं। संबंधित विभागों के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इतनी व्यापक नकल हो नहीं सकती और वहां कोई हाथ नहीं डाल पा रहा। इस बार भी यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार कितना आगे बढ़ पाती है।

अब थोड़ी चर्चा खेल की। कानपुर का ग्रीन पार्क स्टेडियम कभी यूपी की शान होता। खिलाड़ी , प्रशासक और दर्शक सभी उसके प्रशंसक। फिर समय और राजनीति ने ग्रीन पार्क पर ग्रहण लगा दिया और यह स्टेडियम अपने स्वर्णिम अतीत की छाया भर रह गया। यहां मैच होने बंद हो गए तो यूपी में भला और कहां होते। लंबी प्रतीक्षा के बाद अब यह संकट खत्म होने जा रहा है। लखनऊ में एक दर्शनीय इकाना स्टेडियम बना जिसे जिस जिसने देखा , मुरीद हो गया। इसी स्टेडियम में नवंबर में भारत और वेस्ट इंडीज के बीच वन डे मैच होना है। खेल प्रेमी अब बड़ी उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि खेल संघों की राजनीति आइंदा खेलों की कीमत पर नहीं होगी।

पर यह कल्पना या अपेक्षा कुछ अधिक ही है ...! 

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