उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पूरी शिद्दत से राजनीति से अपराध का कोढ़ दूर करने में जुटी

पंजाब की कोर्ट में मुख्तार की पेशी के दौरान जो एंबुलेंस चर्चा में आई उसका रजिस्ट्रेशन उन्हीं डॉ. अलका राय के अस्पताल के नाम पर है जो मुख्तार से पीड़ित हैं। वह भी विधायक निधि से खरीदी गई एंबुलेंस।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 05 Apr 2021 10:26 AM (IST) Updated:Mon, 05 Apr 2021 01:54 PM (IST)
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पूरी शिद्दत से राजनीति से अपराध का कोढ़ दूर करने में जुटी
विडंबना मुख्तार जिस पार्टी के एमएलए हैं, उस पार्टी ने पूरी तरह इस मामले में चुप्पी साध रखी है।

लखनऊ, राजू मिश्र। घाव पर पट्टी बंधी हो तो हकीकत का पूरा अंदाजा नहीं होता। जख्म कितना गहरा है, या नासूर बन चुका है, पता नहीं चलता। कभी कुछ रिस आए तो चर्चा जरूर छिड़ जाती है। मुख्तार अंसारी को लेकर उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकारों के बीच बीते कुछ महीनों से जो चल रहा है, वह जख्म का मामूली रिसाव था, लेकिन एंबुलेंस प्रकरण ने हकीकत से पर्दा उठा दिया है। पूरी तरह उठने में जरूर समय लग सकता है।

बात इतना अधिक प्रतीकों में न करनी पड़ती यदि इस बीच पृष्ठभूमि का एक कालखंड व्यतीत न हो चुका होता। यह पुराना मर्ज है, जिसका योगी राज में काफी कुछ इलाज हो चुका है। अब सर्जरी का आखिरी दौर बाकी है तो पुरानी पट्टियां खोली जा रहीं और घाव परखे जा रहे। किसी पुराने पत्रकार या सत्ता के गलियारों में विचरने वाले फुर्सतियों से पूछिए तो बता देगा कि उत्तर प्रदेश की सियासत में यह जख्म तब गहरे हुए थे, जब अपराधी नेताओं के बूथ मैनेजमेंट का हिस्सा हुआ करते थे। कैंपेन की कमान संभालते थे, संसाधनों का जुगाड़ करते थे और बदले में सफेदपोशों का संरक्षण पाते थे। इस संरक्षण के बूते ही अपराधियों ने अपना समानांतर साम्राज्य खड़ा कर लिया।

अपने नाकारापने और जनता से संवाद टूटने के कारण धीरे-धीरे जो सफेदपोश इनकी कमान संभालते थे, अपराधियों ने बागडोर उनके हाथ से लेकर खुद संभालनी शुरू कर दी। यह उत्तर प्रदेश में वह दौर था जब कांग्रेस कमजोर हो रही थी और सामाजिक न्याय के नाम पर जातीय नायकों का उभार हो रहा था। इन नायकों का मुखौटा पहनकर कई अपराधी भी राजनीति में सीधे दाखिल हो गए। कुछ रॉबिनहुड की शक्ल में भी आए। अपराध का संगठित नेटवर्क और सियासत, दोनों पर इनका कब्जा हो गया। मुख्तार अंसारी का इतिहास बताने की जरूरत नहीं, पर इतना समझ लीजिए कि वह उस दौर के ‘लास्ट मुगल्स’ की श्रेणी में आते हैं।

मुख्तार अंसारी को व्हील चेयर पर मोहाली कोर्ट ले जाती पुलिस। जागरण आर्काइव

मुख्तार अंसारी जैसों के अतीत का यह संक्षिप्त परिचय इसलिए जरूरी हो गया, क्योंकि वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार संगठित अपराध के खिलाफ पूरी संजीदगी से अभियान चला रही है और मुख्तार अपने अतीत के आकाओं के संरक्षण में पंजाब में सरकारी मेहमानवाजी कर रहे थे। कोर्ट के दखल से अब तय हो गया है कि मुख्तार जल्द ही सलाखों के पीछे पहुंचने वाले हैं। यानी प्रदेश की जेल में आमद दर्ज कराना ही पड़ेगा। एंबुलेंस प्रकरण ने यह बता दिया है कि प्रदेश में बीते दो-तीन दशकों में किस तरह की राजनीतिक संस्कृति को सींचा गया जिसमें बड़े बड़े कैक्टस उग आए।

पंजाब की कोर्ट में मुख्तार की पेशी के दौरान जो एंबुलेंस चर्चा में आई उसका रजिस्ट्रेशन उन्हीं डॉ. अलका राय के अस्पताल के नाम पर है, जो मुख्तार से पीड़ित हैं। वह भी विधायक निधि से खरीदी गई एंबुलेंस। एंबुलेंस बाराबंकी में पंजीकृत है और अलका राय मऊ में हैं, जो बाराबंकी से अपना कोई दूर का रिश्ता भी स्वीकार नहीं करतीं। उस बाराबंकी से जहां हाल ही में पंजाब के एक मंत्री आए थे और उनकी यात्रा चर्चा का विषय बनी थी। मुख्तार तब भी पंजाब की जेल में थे। जांच होगी और जाहिर है कि मामले में साजिश की कुछ नई परतें खुलेंगी। लेकिन इस बात की तारीफ करनी चाहिए कि योगी सरकार पूरी शिद्दत से राजनीति से अपराध का कोढ़ दूर करने में जुटी है। विडंबना यह भी कि मुख्तार जिस पार्टी के एमएलए हैं, उस पार्टी ने पूरी तरह इस मामले में चुप्पी साध रखी है।

परधानी का जहर : प्रदेश में नेता और अपराधी का गठजोड़ अधूरा रहता या इतना प्रभावशाली न बन पाता यदि इसमें एक तीसरा पिलर नौकरशाही का न जुड़ता। ऊपरी तल पर जब ब्यूरोक्रेसी सत्ता को साधने के क्रम में नेता और अपराधी गठजोड़ के लिए रेड कारपेट बिछाकर अपने आराम की जगह तलाश रही थी, तब निचले स्तर पर भी नौकरशाही इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही थी। आकाओं से सीखे सबक ग्राम पंचायत स्तर तक अमल में लाए जाने लगे।

शुद्ध गंवई शैली में कहा जाए तो परधानी के चुनाव पंच परमेश्वर की भावना से चारित्रिक आधार के बजाए धनबल बाहुबल से जीतने का चलन शुरू हुआ तो यहां भी गठजोड़ काम करने लगा। नकदी बंटने लगी और शराब के प्रबंध होने लगे। शराब कम पड़ने लगी तो गांव के ही मजरे और पुरवों में भट्ठियां तैयार होने लगीं। इनमें से काफी कुछ बाद में स्थायी कुटीर उद्योग का रूप ले गईं। मतदाताओं ने इनकी सहायता की, पुलिस से संरक्षण दिलवाया और पुलिस ने भी इन्हें हफ्ता वसूली और गुडवर्क के औजार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

इस बार यह चुनौती बड़ी हो गई है। जानलेवा शराब का कहर अबकी बार अयोध्या पर टूटा है। हालांकि, योगी सरकार ने इधर अवैध शराब और इसका धंधा करने वालों के खिलाफ अभियान भी छेड़ रखा है। कासगंज में तो एक पुलिसकर्मी शहीद भी हो चुका है और एनकाउंटर भी हुए, लेकिन यह चुनौती संभवत: अनुमान से अधिक बड़ी है।

[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]

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