यूपी में स्वच्छता को आदत न बना पाने की कीमत, बुखार और डेंगू की चपेट में हजारों लोग

UP Dengue News सरकार स्वच्छता और जागरूकता के लिए अपने स्तर पर जो कर रही है वह उसके कर्तव्य पालन का हिस्सा है लेकिन इन मौसमी बीमारियों से यदि वास्तव में छुटकारा पाना है तो आम नागरिकों व ग्रामीणों को सफाई के संस्कार के प्रति स्वयं सजग रहना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 10:00 AM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 01:30 PM (IST)
यूपी में स्वच्छता को आदत न बना पाने की कीमत, बुखार और डेंगू की चपेट में हजारों लोग
टूंडला में एक खाली प्लाट की यह तस्वीर बताती है बीमारियों की वास्तविक वजह। जागरण आर्काइव

लखनऊ, राजू मिश्र। UP Dengue News उत्तर प्रदेश में साफ-सफाई की अनदेखी और नतीजे में बीमारियां थम नहीं रहीं। डेंगू और बुखार के कारण लोगों का बड़ा ही बुरा हाल है। डेंगू को लेकर ब्रज क्षेत्र में हालात ज्यादा खराब हैं। फीरोजाबाद में एक बार थमती दिखाई दे रही बीमारी का प्रसार अब पड़ोसी जिलों में भी दिख रहा है। यहां डेंगू का डी-2 स्ट्रेन खतरा बना हुआ है।

ब्रज क्षेत्र में हालात भले ज्यादा खराब हों, लेकिन इन दिनों यह पूरे प्रदेश की सच्चाई है। बुखार तो आम है। डेंगू जानलेवा साबित हो रहा है। अस्पतालों की ओपीडी ऐसे ही मरीजों से भरी पड़ी है। ये हालात क्यों पैदा हो रहे या अधिक ध्यान क्यों दिया जा रहा, इस पर विशेषज्ञ मंथन कर रहे हैं। बारिश और बाढ़ के कारण उत्तर प्रदेश में यह मौसम, वैसे भी बीमारियों वाला समझा जाता है। कोविड के बाद से सहमे लोग अतिरिक्त चिंतातुर हैं। यह भी वजह है कि हर तरफ बीमारियों की चर्चा चल रही है।

प्रदेश सरकार अपने स्तर पर बीमारी पर काबू करने के लिए हर संभव जरूरी जतन कर रही है, लेकिन अतीत के प्रसंग बता रहे हैं कि जागरूकता प्रयासों के बिना इस पर प्रभावी नियंत्रण लगभग असंभव या अस्थायी है। स्वच्छता को अब भी आदत न बना पाने और ग्रामीण क्षेत्र में फैले झोला छाप या अप्रशिक्षित डाक्टरों के भ्रमजाल में मरीजों का आसानी से फंस जाना बीमारी को गंभीर बना रहा है। कुछ समय पहले ही प्रदेश सरकार ने स्वच्छता के प्रति लापरवाह लोगों के खिलाफ आर्थिक दंड व कारावास का प्रविधान किया है। अब प्राथमिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे विद्यालयों के आसपास व विद्यालय परिसर में दवाओं का छिड़काव कराकर गंदगीमुक्त करायें। पंचायतीराज व स्वास्थ्य विभाग को बच्चों को पीने लायक स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने सहित विस्तृत दिशानिर्देश दिए गए हैं।

कहने का तात्पर्य यह कि जो स्वयं सजग नहीं रह सकते, उन्हें सजग बनाने का काम भी समाज के जागरूक लोगों को करना पड़ेगा। इसी तरह झोला छाप डाक्टरों को लेकर भी उपाय करने पड़ेंगे। फीरोजाबाद और आसपास के जिलों में हालात ज्यादा गंभीर होने के पीछे स्थानीय स्वास्थ्य महकमे की लापरवाही प्रमुख कारण निकलकर सामने आई थी। इस पर प्रशासकीय कार्रवाई भी हुई, लेकिन इस लापरवाही के कारण जगह-जगह खुली झोला छाप डाक्टरों की क्लीनिकों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई अभी अपेक्षित रूप से नहीं हो पा रही है। शनिवार को ही फीरोजाबाद में प्रशासन ने झोलाछाप डाक्टरों के आठ ठिकानों पर छापा मारकर उनकी दुकानें बंद कराईं, लेकिन ऐसी कार्रवाई पूरे प्रदेश में एक साथ करने की आवश्यकता है। यह बात यहां भी लागू होती है कि लोगों को अपने और अपनों के स्वास्थ्य के लिए स्वयं प्रशिक्षित चिकित्सकों पर ही भरोसा करना पड़ेगा।

बात सम्मान की : सवाल नहीं पूछने की आदत और जो चल रहा है, वह चलते रहते देखते रहना आदत बना लेना ही पराधीनता का आधार है। अब जब सोच को नए पंख मिले हैं तो पराधीनता की ऐसी तमाम बेड़ियां टूट रह हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की एक शिक्षिका को यह बात अखरी कि जब पुरुषों के नाम के आगे वैवाहिक स्थिति सूचक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाता तो महिलाओं के मामले में क्यों ऐसा किया जाता है। क्यों किसी महिला के आगे सुश्री या श्रीमती जैसे विशेषण लिखने होते हैं। लिहाजा महिला शिक्षक ने यह सवाल आधिकारिक तौर पर रखा। आखिरकार इस पर बहस चली और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने तय किया कि अब किसी भी शिक्षक के नाम के आगे केवल डाक्टर या प्रोफेसर ही लिखा जाएगा। सुश्री या श्रीमती नहीं लिखा जाएगा। आगरा के आंबेडकर विश्वविद्यालय ने भी इसका तत्काल अनुसरण किया।

स्मरण रहे कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जबकि आगरा का डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय है। इस मायने में यह प्रदेश का पहला राज्य विश्वविद्यालय बन गया, जहां ऐसी पहल की गई। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय ने एक कदम और आगे बढ़ाया। उसने संबद्ध महाविद्यालयों की महिला शिक्षकों की वरिष्ठता सूची पदनाम के अनुरूप बनाने के निर्देश दिए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कदम स्वत:स्फूर्त है। यह कदम सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। विश्वविद्यालय बौद्धिक विमर्श के स्वायत्त केंद्र होते हैं। इसीलिए यह विमर्श और परिणाम में बदल गया। कोई कारण नहीं कि डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय का अनुसरण अन्य राज्य विश्वविद्यालय न करें। अन्य सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठान भी इस भावना को समझें और अपने यहां लागू कराएं। उम्मीद है, यह जल्द होगा।

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