UP में मिलकर भाजपा से मोर्चा लेंगे देशभर के विरोधी दल, ओमप्रकाश का दावा- टीएमसी, शिवसेना व आप भी तैयार
UP Assembly Election 2022 सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर का दावा है कि बंगाल से टीएमसी महाराष्ट्र से शिवसेना दिल्ली से आम आदमी पार्टी और हैदराबाद से एआइएमआइएम उनके साथ मिलकर यूपी में चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए राजनीति में बड़ा प्रयोग देखने के लिए मिल सकता है। देशभर के विरोधी दल भाजपा से मोर्चा लेने के लिए विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर ताल ठोंकने का मन बना रहे हैं। कभी योगी सरकार में सहयोगी रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर का दावा है कि बंगाल से टीएमसी, महाराष्ट्र से शिवसेना, दिल्ली से आम आदमी पार्टी और हैदराबाद से एआइएमआइएम उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं।
पूर्वांचल की कुछ सीटों पर राजभर वोटों के प्रभाव के कारण ही सुभासपा को साथ लेकर भाजपा ने योगी सरकार में ओमप्रकाश राजभर को मंत्री बनाया था। मतभेद के चलते भाजपा सरकार से अलग होने के बाद से ही सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भगवा खेमे के खिलाफ अपना मोर्चा सजा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी पार्टियों की कोशिश छोटे-छोटे दलों को साथ लेने की है, वहीं राजभर तमाम छोटे-छोटे दल मिलाकर भागीदारी संकल्प मोर्चा को मजबूत बनाने की कसरत में जुटे हैं। मकसद यही है कि कैसे भी भाजपा को हराया जाए।
सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का दावा है कि महाराष्ट्र में सत्तासीन शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राऊत, दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के सांसद व प्रदेश प्रभारी संजय सिंह, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर से लगातार बात चल रही है। इसके साथ ही बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के महासचिव ने भी उत्तर प्रदेश में भागीदारी संकल्प मोर्चा में शामिल होकर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है।
एआइएमआइएम के मुखिया असदउद्दीन ओवैसी के सवाल पर सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर बोले कि उन्हें भाजपा का बी-टीम माना जाता है, इसलिए उनकी भी मजबूरी है कि भाजपा के खिलाफ लड़ने वाले हमारे मोर्चे में शामिल हों। राजभर ने बताया कि सबकी सहमति पर मोर्चा बनाकर सीटों का बंटवारा कर लिया जाएगा। चूंकि, उनका उद्देश्य सभी जातियों और छोटे दलों को प्रतिनिधित्व देने का है, इसलिए तय किया है कि पांच वर्ष में पांच मुख्यमंत्री और प्रतिवर्ष चार यानी पांच वर्ष में कुल बीस उपमुख्यमंत्री अलग-अलग जातियों से बनाए जाएंगे।