UP Assembly Election 2022: यूपी में खोया जनाधार पाने के लिए कांग्रेस का सोशल इंजीनियरिंग पर जोर

UP Assembly Election 2022 उत्तर प्रदेश में खोया जनाधार वापस पाने की जिद्दोजहद में जुटी कांग्रेस समाज के सभी वर्गों और समुदायों को साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग पर जोर दे रही है। संगठन पुनर्गठन से शुरू हुई इस मुहिम को पार्टी फील्ड में भी विस्तार देने में जुटी है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 07:37 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 07:38 PM (IST)
UP Assembly Election 2022: यूपी में खोया जनाधार पाने के लिए कांग्रेस का सोशल इंजीनियरिंग पर जोर
यूपी में कांग्रेस समाज के सभी वर्गों और समुदायों को साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग पर जोर दे रही है।

लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश में अपना खोया जनाधार वापस पाने की जिद्दोजहद में जुटी कांग्रेस समाज के सभी वर्गों और समुदायों को साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग पर जोर दे रही है। संगठन पुनर्गठन से शुरू हुई इस मुहिम को पार्टी फील्ड में भी विस्तार देने में जुटी है। पंचायत चुनाव में बेशक पार्टी को इसका लाभ न मिला हो, लेकिन इस दिशा में उसकी कोशिशें जारी हैं।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) का पुनर्गठन करते हुए कमेटी के आकार पर कैंची चलाने के साथ उसमें सोशल इंजीनियरिंग को खास तवज्जो दी थी। इसी का नतीजा था कि 115 सदस्यीय पीसीसी में सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 34 फीसद, मुस्लिमों की 17 फीसद, अन्य पिछड़ा वर्ग की 34 फीसद, अनुसूचित जाति की 12 फीसद और सिख समुदाय की एक फीसद है।

जिलाध्यक्षों के चयन में भी सामाजिक संतुलन को साधने की कोशिश की गई। पार्टी के 75 जिलाध्यक्षों में सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 47 फीसद, मुसलमानों की 16 फीसद, अन्य पिछड़ा वर्ग की 25 फीसद और अनुसूचित जाति की 11 फीसद है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी और जिलाध्यक्षों के चयन में पार्टी भले ही अन्य पिछड़ा वर्ग को उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व न दे सकी हो, लेकिन उसकी ओर हाथ बढ़ाकर उसने ओबीसी वर्ग की उपेक्षा के आरोपों से खुद को बरी करने की कोशिश जरूर की है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं कि 8135 न्याय पंचायत समितियों और 840 ब्लाक समितियों के गठन में भी सभी वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है। 11 सदस्यीय ग्राम पंचायत समितियों के गठन में भी सोशल इंजीनियरिंग का ख्याल रखा जाएगा। संगठन पुनर्गठन में सभी वर्गों को समाहित कर उन्हें सियासी संदेश देने के साथ कांग्रेस पिछड़ों और अनुसूचित जाति जातियों के बीच विशेष रूप से पैठ बनाने में लगी है।

प्रयागराज में निषादों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाते हुए पार्टी ने मार्च में प्रयागराज से बलिया तक नदी अधिकार यात्रा निकालकर पूर्वांचल में गंगा किनारे के जिलों में ठीक-ठाक उपस्थिति रखने वाले इस समुदाय का झंडाबरदार बनने की भूमिका निभाई है। वहीं आजमगढ़ में दलित पंचायत का आयोजन कर उसने अनुसूचित जातियों के बीच यह साबित करने का प्रयास किया कि जोर जुल्म के खिलाफ वह शोषितों-वंचितों के साथ है। देखना होगा कि कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग विधानसभा चुनाव में क्या रंग लाएगी।

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