यूपी विधानसभा उपाध्यक्ष चुनाव की बाजी नहीं, पिछड़ों का दिल जीतने के लिए थी सपा की चाल, जानिए पूरी रणनीति
UP Assembly Deputy Speaker election उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने सपा के बागी विधायक नितिन अग्रवाल पर अपनी खास रणनीति से दांव लगाया तो उसमें पेंच फंसाकर सपा ने भी अपना मकसद पूरा कर लिया।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने सपा के बागी विधायक नितिन अग्रवाल पर अपनी खास रणनीति से दांव लगाया तो उसमें पेंच फंसाकर सपा ने भी अपना मकसद पूरा कर लिया। बिसात बिछते ही परिणाम भी स्पष्ट था कि भाजपा प्रत्याशी की जीत तय है, लेकिन सपा ने फिर भी कुर्मी समाज के नरेन्द्र सिंह वर्मा को प्रत्याशी बनाकर पिछड़ा कार्ड खेल दिया। विपक्षी दल की यह चाल बाजी जीतने के लिए नहीं, बल्कि प्रदेश की राजनीति के सबसे बड़े वोट बैंक 'पिछड़ों' का दिल जीतने के लिए थी। इसके सहारे सत्ताधारी दल पर यह आरोप लगाने का भी मौका मिल गया कि भाजपा ने इस वर्ग के प्रत्याशी को उपाध्यक्ष नहीं बनने दिया।
दलों में सेंधमारी और क्रास वोटिंग तो चुनाव के दौरान होनी ही थी, लेकिन नितिन अग्रवाल को भाजपा द्वारा प्रत्याशी बनाए जाते ही सपा सतर्क हो गई थी। वह समझ रही थी कि विरोधी खेमे के बागी विधायक को उपाध्यक्ष बनवाकर सत्तारूढ़ भाजपा वैश्य वर्ग को साधने चली है। सत्ता के गलियारे में चर्चा है कि अपने ही बागी को समर्थन देकर सपा चाहती तो भाजपा के नहले पर देहला मार सकती थी, लेकिन वास्तविकता में सपा के रणनीतिकारों की नजर वैश्य की बजाए उससे बड़े पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक पर थी।
चूंकि, सदन में भाजपा के 304 और सपा के 49 विधायक हैं, इसलिए तय था कि पूर्ण बहुमत से भाजपा प्रत्याशी की जीत तय है। इसके बावजूद नितिन अग्रवाल के मुकाबले में सपा ने सीतापुर से विधायक नरेन्द्र सिंह वर्मा को प्रत्याशी घोषित कर नामांकन करा दिया। परिणाम से वाकिफ सपा अपनी पटकथा भी तैयार रखे थी। सदन में नेता विरोधी दल राम गोविंद चौधरी के शब्द पिछड़ा वर्ग को संदेश दे रहे थे। वह बोले कि भाजपा सदन के बाहर पिछड़ा और दलित प्रेम दिखाने का नाटक करती है और काम इनके विरोध में करती है। भाजपा ने संविधान, नियम, संसदीय परंपराओं को ताख पर रखकर सपा के अधिकृत प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह वर्मा को उपाध्यक्ष नहीं बनने दिया, क्योंकि वह कुर्मी यानी पिछड़ी जाति के थे।
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