डेंगू के चार वर्गों में टाइप टू है सबसे खतरनाक, विशेष परिस्थितियों में ही होती है प्लेटलेट चढ़ाने की जरूरत

डेंगू में सबसे खतरनाक शॉक सिंड्रोम की स्थिति होती है। इसमें शरीर के अंग सही से काम नहीं करते हैं। 30 हजार प्लेटलेट्स रह जाने के बाद इसे चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि डेंगू के 90 प्रतिशत मरीजों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sun, 24 Oct 2021 07:16 AM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 07:16 AM (IST)
डेंगू के चार वर्गों में टाइप टू है सबसे खतरनाक, विशेष परिस्थितियों में ही होती है प्लेटलेट चढ़ाने की जरूरत
पीडियाट्रिक सर्जन डा. श्रीकेश सिंह का कहना है कि डेंगू तीन तरह का होता है।

लखनऊ, [रामांशी मिश्रा]। डेंगू के मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। गंभीर मरीजों में प्लेटलेट्स की डिमांड भी बढ़ रही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि डेंगू के 90 प्रतिशत मरीजों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में पीडियाट्रिक सर्जन डा. श्रीकेश सिंह का कहना है कि डेंगू तीन तरह का होता है। सामान्य डेंगू में पांच से छह दिनों तक बुखार चढ़ता और उतरता रहता है। सिर दर्द भी रहता है। इसके अलावा डेंगू हैमरेजिक फीवर की स्थिति में दवा देने के बाद भी अधिक बुखार, प्लेटलेट काउंट और सीबीसी की जांच के बाद लक्षण कम न होने की स्थिति में निगरानी में रखने की जरूरत होती है।

डेंगू में सबसे खतरनाक शॉक सिंड्रोम की स्थिति होती है। इसमें शरीर के अंग सही से काम नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में 30 हजार प्लेटलेट्स रह जाने के बाद इसे चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। इनके अलावा किसी तरह के क्रॉनिक बीमारी या लंबे समय तक चली आ रही बीमारी के मरीज, वृद्ध और ब'चों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है।

लोकबंधु राजनारायण संयुक्त चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डा. अजय शंकर त्रिपाठी कहते हैं कि प्लेटलेट्स चढ़ाना डेंगू का इलाज नहीं होता। डेंगू वायरस के चार वर्गों में टाइप टू ही सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इसे हैमरेजिक डेंगू कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें शरीर में आंतरिक या बाह्य रूप से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसी स्थिति में यदि एक लाख प्लेटलेट्स हों तो भी प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता होती है, लेकिन यह बहुत कम मामलों में देखा जाता है। हालांकि उन्होंने इसके साथ यह सलाह दी है कि यदि मरीज का प्लेटलेट काउंट कम हो रहा है तो अपने डाक्टर का परामर्श मानें और साथ ही एक डोनर तैयार रखें।

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग और ब्लड बैंक की विभागाध्यक्ष डा. तूलिका चंद्रा ने बताया कि ज्यादातर रोगी ऐसे होते हैं जिन्हें प्लेटलेट्स की जरूरत नहीं होती। इसके बावजूद उन्हें चार से छह यूनिट तक प्लेटलेट मुहैया करवानी पड़ती है। वह कहती हैं कि यह नियम बन जाना चाहिए कि डेंगू के मरीजों में किसी तरह की परेशानी न होने पर 20 हजार प्लेटलेट्स आने तक प्लेटलेट्स न चढ़ाई जाए। यहां तक कि एक सामान्य डेंगू के मरीज में दस हजार प्लेटलेट्स होने तक प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती। इस समय ब्लड बैंक में 150 यूनिट तक की प्लेटलेट्स की मांग देखी जा रही है। सामान्य दिनों में यह मांग 60 से 70 यूनिट तक रहती है।

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