व्यापारियों को नहीं रास आ रहा रामनगरी का कायाकल्प, सड़क चौड़ीकरण के विरोध में बंद की दुकानें
रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के साथ रामनगरी की स्वर्णिम संभावना भी प्रशस्त हो रही है पर यह उम्मीद व्यापारियों को नहीं रास आ रही है। जहां रामनगरी के मुख्य आंतरिक सहित कई मार्गों के चौड़ीकरण की तैयारी है वहीं मार्गों के किनारे व्यापारियों के व्यवसायिक विस्थापन की तलवार लटकी है।
अयोध्या, संवाद सूत्र। रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के साथ रामनगरी की स्वर्णिम संभावना भी प्रशस्त हो रही है, पर यह संभावना व्यापारियों को नहीं रास आ रही है। इस संभावना के तहत जहां रामनगरी के मुख्य आंतरिक मार्ग सहित कई मार्गों के चौड़ीकरण की तैयारी है, वहीं मार्गों के किनारे व्यापारियों के व्यवसायिक विस्थापन की तलवार लटक रही है। व्यापारियों का यह असंतोष गुरुवार को ऐतिहासिक बंदी के रूप में बयां भी हुआ। रामनगरी के मुख्य बाजार सहित अनेक अन्य मार्गों की दुकानें चौड़ीकरण के विरोध में बंद रहीं। यह बंदी इतनी व्यापक थी कि हनुमानगढ़ी एवं कनकभवन जैसी पीठों पर पहुंचे श्रद्धालुओं को प्रसाद खरीदने के भी लाले पड़ गए।
बंदी का आह्वान करने वाले अयोध्या उद्योग व्यापार मंडल ट्रस्ट के अध्यक्ष नंदकुमार गुप्त के अनुसार व्यापारियों को सड़क चौड़ीकरण से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सड़क चौड़ीकरण से पूर्व व्यापारियों का व्यवसायिक पुनर्वास सुनिश्चित किया जाय। बंद की शत-प्रतिशत कामयाबी पर मुदित युवा व्यापारी नेता शक्ति जायसवाल कहते हैं कि योगी सरकार को जो करना हो करे, पर व्यापारियों को दुकान के बदले दुकान दी जाय। नहीं तो व्यापारी भूखों मर जाएगा। वे वाराणसी का उदाहरण देते हैं, जहां छोटी-छोटी दुकानों का करोड़ रुपये तक का मुआवजा दिया गया। व्यापारियों के असंतोष के पीछे मुआवजा भी बड़ी वजह है। प्रशासन सड़क चौड़ीकरण में भू-भवन स्वामी को सर्किल रेट के हिसाब से मुआवजा दे रहा है, किंतु पीढ़ियों से किराएदार के तौर पर दुकान चला रहे व्यापारियों के हिस्से 10-20 हजार रुपये जैसी सांत्वना राशि ही आ रही है।
ऐसे में व्यापारियों के सामने जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है और वे कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ आर-पार के आंदोलन की मुद्रा अख्तियार करते जा रहे हैं। पूर्व सभासद एवं सड़क चौड़ीकरण में प्रतिष्ठान गंवाने से आशंकित अचलकुमार गुप्त कहते हैं, मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद व्यापारियों का पुनर्वास सुनिश्चित किए बिना उउन्हें उनके प्रतिष्ठानों से वंचित किया जा रहा है। पंकज सर्राफ कहते हैं, रोजी से हाथ धोने से अच्छा है कि प्रभावित होने वाले दुकानदार मरना पसंद करें।