Tigress Rescued: बरेली से पकड़ी गई बाघिन को वन विभाग की टीम ने लखीमपुर खीरी के जंगल में छोड़ा
Tigress Rescued and Released in Jungle बाघिन को लेकर देर रात लखीमपुर खीरी के दुघवा के जंगल में पहुंची। यहां पर जैसे ही पिजड़े का गेट खोला गया बाघिन काफी जोर-जोर से दहाडऩे लगी और फिर एक लम्बी छलांग लगाकर पिजड़े से बाहर निकल आई।
लखनऊ, जेएनएन। झुमका नगरी बरेली में करीब डेढ़ वर्ष से लोगों में दहशत पैदा करने वाली बाघिन को वन विभाग की टीम ने अभियान चलाकर रेस्क्यू किया। शुक्रवार को बंद पड़ी रबर फैक्ट्री प्रांगण में ट्रैंक्यूलाइज्ड बाघिन को शनिवार देर रात लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क के जंगल में छोड़ा गया।
बरेली से वन विभाग की टीम एक बड़े पिंजड़े में बंद बाघिन को लेकर देर रात लखीमपुर खीरी के दुघवा के जंगल में पहुंची। यहां पर जैसे ही पिजड़े का गेट खोला गया, बाघिन काफी जोर-जोर से दहाडऩे लगी और फिर एक लम्बी छलांग लगाकर पिजड़े से बाहर निकल आई। इसके बाद तो वह दो-तीन छलांग लगाते हुए जंगल में ओझल हो गई। उसको जंगल जैसा ही माहौल देने के लिए दुधवा नेशनल पार्क के जंगल मे छोड़ा गया है।
इससे पहले गुरुवार को बरेली में बाघिन को पकडऩे के लिए पिंजड़े में शिकार डालकर इंतजार किया गया। यहां पर गांव के लोगों के लिए बीते 15 महीने से दहशत का बड़ा कारण बनी चार वर्षीया बाघिन को शुक्रवार को वन विभाग की टीम ने अपने कब्जे में ले लिया। बंद पड़ी रबर फैक्ट्री के जंगल में ठिकाना बनाये बाघिन को शुक्रवार को ट्रेंकुलाइज कर लिया गया। बरेली में गुरुवार सुबह को बाघिन की लोकेशन खाली टैंक के पास मिली थी, जिसके बाद चारों ओर जाल लगा दिया गया था। शुक्रवार सुबह तक वह जाल में नहीं फंसी तो शासन से अनुमति लेकर डाक्टर दक्ष की टीम ने उसे ट्रेंकुलाइज कर दिया। बेहोश बाघिन को पिंजरे में रखा गया है। यह लखीमपुर खीरी की किशनपुर सेंचुरी से पीलीभीत-बहेड़ी होते हुए यहां आ गई थी। इसके बाद इसे दुबारा मैलानी क्षेत्र के किशनपुर छोड़ने का फैसला किया गया। उसके शरीर के धारियों के आधार पर उसकी पहचान की गई है।
वन विभाग के जांबाज अफसरों को खतरनाक जानवरों से प्रेम
बाघ, तेंदुआ व शेर जैसे खतरनाक जानवर का नाम सुनते ही हर किसी के शरीर में सिरहन दौड़ जाती है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जिन्हेंं खतरनाक जानवरों से डर नहीं बल्कि उनसे प्रेम होता है। पूरे प्रदेश में कहीं भी आबादी के बीच इन्हेंं जानवरों को पकड़ने के लिए इन्हेंं बुलाया जाता है। आदमखोर बाघ हो या तेंदुआ इन्हेंं यह आसानी से पकड़ लेते हैं।
डा. दक्ष गंगवार : पीलीभीत टाइगर रिजर्व के संविदा वेटनरी आफिसर डा. दक्ष गंगवार खतरनाक जानवरों को पकड़ने के 50 अभियानों में शामिल हो चुके हैं। वह 30 से ज्यादा बाघ और तेंदुए पकड़ चुके हैं। कई वर्षों से वह वाइल्ड लाइफ से जुड़े हैं। वह जंगली जानवरों से डरते नहीं बल्कि उन्हेंं बचाने का प्रयास करते हैं। फतेहगंज पश्चिमी की बंद रबर फैक्ट्री में घूम रही बाघिन शॢमली को टैंक के ऊपर से केवल एक ही डार्ट मारकर उन्होंने ट्रैंकुलाइज किया।
सुशांत सोमा : पीलीभीत में तैनात डब्ल्यूटीआइ (वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया) के वन्यजीव वैज्ञानिक सुशांत सोमा जम्मू के रहने वाले हैं। 2018 में वह वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया से जुड़े। ढाई वर्ष में वह 25 से ऊपर रेस्क्यू में शामिल रहे हैं। इस वर्ष टाइगर का यह उनका तीसरा रेस्क्यू था। रबर फैक्ट्री में बाघिन का सटीक लोकेशन पता करने व उसे सुरक्षित पकडऩे में सुशांत सोमा का मुख्य योगदान रहा है। जिसके लिए मुख्य वन संरक्षक ललित कुमार, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर जावेद अख्तर, डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल, मयूख चटर्जी, प्रमुख मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन, प्रभागीय वन अधिकारी भारत लाल के साथ ही वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने भी सुशांत के कार्यों की सराहना की।