Covid19: स्वामी चिदानंद सरस्वती की देशवासियों से अपील, आपदा में परमार्थ ही सबसे बड़ा धर्म
परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने देशवासियों से अपील की है कि संकट के समय हमें एकजुट होकर एक-दूसरे का साथ देना चाहिए न कि इसमें लाभ देखना चाहिए। पराए को अपना बनाकर अपनेपन का एहसास करना वर्तमान समय की मांग है।
लखनऊ, जेएनएन। कोरोना संक्रमण काल में मानव सेवा ही सबसे बड़े धर्म है। सेवा ही यज्ञ, योग, पूजा व ध्यान है। यही ज्ञान और गंगा स्नान करने का पुण्य है। संक्रमण के इस दौर में मानवता की जितनी सेवा होगी उतना पुण्य आपकी झोली में होगा। परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने देशवासियों से अपील की है कि संकट के समय हमें एकजुट होकर एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, न कि इसमें लाभ देखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सनातन परंपरा का निर्वहन करने लोगों की मदद करने का जज्बा आपके अंदर की धाॢमक भावना का आईना है। पराए को अपना बनाकर अपनेपन का एहसास करना वर्तमान समय की मांग है। अपनों के साथ जब अपने खड़े हो जाते हैं तो बंजर भूमि में हरियाली का एहसास होता है। यही एहसास कराने की आवश्यकता है। अपने जीवन की जो खुशबू व सुगंध है, वह आध्यामिक जीवन जीने से आती है। महापुरुषों के सत्संग से और शास्त्रों के चिंतन व मनन करने से आती है। हमारे शास्त्र महाग्रंथ नहीं जीवन पद्धति हैं, जो हमें सिखाते हैं कि हमारे पास जो भी ज्ञान और शक्ति है उसका उपयोग अपने समाज, राष्ट्र के लिए कैसे करें, इस पर मंथन करने का समय चल रहा है।
उन्होंने कहा कि हम सभी को एक बात याद रखनी चाहिए कि जीवन केवल वर्तमान क्षण के लिए ही उपलब्ध है, अतीत या भविष्य में नहीं, इसलिए जो भी इस क्षण हमारे पास है, उसे साक्षी भाव से प्रभु का प्रसाद समझ कर स्वीकार करें, चाहे वह खुशी के क्षण हो या फिर पीड़ा के। हम सब ने धरती पर जन्म लिया है तो उसके पीछे परमात्मा का उद्देश्य जरूर है। हमारे शास्त्र और आध्यामिक जीवन पद्धति उस उद्देश्य को खोजने में मदद करते हैं। इस अटल सत्य को याद रखना है कि जीवन है तो मृत्यु भी है, क्योंकि मृत्यु ही अंतिम सत्य है। इसलिए जीवन में आने वाली हर कठिनाई का सामना डर से डट कर करें। शरीर नश्वर है, हम आएं हैं तो जाएंगे भी परंतु अपनी खुशबू सृष्टि में बिखेर कर जाएं। संसार को कुछ देकर जाएं जिससे आने वाली पीढिय़ों का जीवन सहज हो सके।