राजभर की बर्खास्तगी के बाद उनकी पार्टी पर मंडराने लगे संकट के बादल, सुभासपा में हो सकती दो फाड़
संकेत मिल रहे हैं कि सुभासपा के विधायक भाजपा नेतृत्व के संपर्क में हैं। हालांकि राजभर ने इस तरह की अटकलों को खारिज किया है।
लखनऊ, जेएनएन। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को योगी मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये जाने के बाद अब उनकी पार्टी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सुभासपा में दो फाड़ हो सकती है। संकेत मिल रहे हैं कि सुभासपा के विधायक भाजपा नेतृत्व के संपर्क में हैं। हालांकि राजभर ने इस तरह की अटकलों को खारिज किया है।
वर्ष 2017 में सुभासपा को भाजपा से समझौते में आठ सीट मिली थी जिनमें गाजीपुर जिले की जहूराबाद से ओमप्रकाश राजभर और जखनिया से त्रिवेणी राम, कुशीनगर जिले के रामकोला से रामानंद बौद्ध और वाराणसी के अजगरा से कैलाश नाथ सोनकर चुनाव जीते थे। सुभासपा चार सीटें हार गई थीं। राजभर के अलावा तीन अन्य विधायक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव जीते हैं। उनके भाजपा में भी अच्छे संबंध हैं। संकेत मिल रहे हैं कि तीन विधायक सुभासपा से अलग होकर अपना नया दल बना सकते हैं। सरकार में इन तीनों को महत्वपूर्ण दायित्व दिया जा सकता है। इससे भाजपा एक तीर से दो शिकार कर सकती है। अव्वल तो राजभर को ठिकाने लगाना और दूसरे अनुसूचित वर्ग के बीच एक नई ताकत उभारना। इस दिशा में पहल शुरू हो गई है। इस बारे में जब ओमप्रकाश राजभर से पूछा गया तो उन्होंने तंज किया कि भाजपा तो मुझे भी तोड़ सकती है। फिर दावा किया कि हमारे सभी विधायक चट्टान की तरह हमारे साथ खड़े हैं।
17 वर्ष पहले हुई थी सुभासपा की स्थापना
बसपा संस्थापक कांशीराम के साथ ओमप्रकाश राजभर ने राजनीति का ककहरा सीखा। वह 1996 में वाराणसी की कोलअसला सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्हें भाजपा ने तीसरे नंबर पर ला दिया। तब भाजपा के टिकट पर अजय राय चुनाव जीते थे। चुनाव हारने के बाद भी राजभर बसपा में बने रहे लेकिन, 2000 के बाद वह राजभरों के नेता के रूप में उभरे। 27 अक्टूबर, 2002 को उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की स्थापना की। राजभर ने 2004 से सभी चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन, उन्हें सफलता भाजपा से गठबंधन के बाद 2017 में मिली। वह 2017 में ही पहली बार विधायक बने और योगी सरकार में मंत्री भी बने।
ओमप्रकाश राजभर मंत्रिमंडल से बर्खास्त, पुत्र अरविंद, सहयोगी राणा समेत सात को गंवानी पड़ी कुर्सी
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप