MBBS में दाखिले के नाम पर करोड़ों का फर्जीवाड़ा उजागर, STF ने लखनऊ से तीन को दबोचा

कंपनी बनाकर छात्रों को फोन कर एमबीबीएस व मेडिकल पीजी में दाखिला कराने का देते थे झांसा। सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों से पांच से छह लाख रुपये वसूले जाते थे। 26 लाख छात्रों का अनधिकृत डाटा भी बरामद।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sat, 06 Mar 2021 09:10 PM (IST) Updated:Sun, 07 Mar 2021 07:57 AM (IST)
MBBS में दाखिले के नाम पर करोड़ों का फर्जीवाड़ा उजागर, STF ने लखनऊ से तीन को दबोचा
आरोपितों में एक बीएमएस डाक्टर भी, 15 करोड़ की ठगी उजागर।

लखनऊ, जेएनएन। एमबीबीएस और मेडिकल पीजी में दाखिला दिलाने के नाम पर करोड़ों की ठगी उजागर हुई है। एसटीएफ ने विजयंत खंड गोमतीनगर से बीएमएस डाक्टर समेत तीन लोगों को गिरफ्तार कर फर्जीवाड़े का राजफाश किया है। आरोपितों ने करीब 15 करोड़ रुपये हड़पने की बात कबूली है। आरोपितों से 26 लाख छात्रों का अनधिकृत डाटा बरामद किया गया है।  कुछ दिनों पहले पटना निवासी कुमार शैलेंद्र मणि ने बेटी को एमबीबीएस में दाखिला दिलाने के नाम पर छह लाख की ठगी की एफआइआर विभूतिखंड थाने में दर्ज कराई थी और आरोपितों को नामजद किया था।

एसटीएफ प्रभारी एसएसपी अनिल कुमार सिसोदिया के मुताबिक इसके बाद साइबर टीम ने जांच शुरू की। पड़ताल के दौरान मूलरूप से समस्तीपुर बिहार निवासी सौरभ कुमार गुप्ता, सेक्टर-19 इंदिरानगर निवासी डाक्टर अजिताभ मिश्र और लखनऊ की स्वप्न लोक कालोनी चिनहट निवासी विकास सोनी को गिरफ्तार किया गया। डा. अजिताभ मूलरूप से अमेठी के पूरे देवदत्त मिश्र का पुरवा दरखा और विकास संगम विहार नई दिल्ली का रहने वाला है। आरोपितों के पास 26 लाख छात्रों का डाटा कहां से आया, इसके बारे में एसटीएफ छानबीन कर रही है। प्रभारी एसएसपी एसटीएफ के मुताबिक बरामद डाटा का फारेंसिक आडिट कराया जाएगा। 

पूछताछ में राइज ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड के नाम से विराट खंड तीन में कंसल्टेंसी कंपनी चलाने वाले सौरभ ने बताया कि वह कुछ मेडिकल कालेजों  के स्टाफ के साथ मिलकर गिरोह चलाता था। उसने छात्रों को एमबीबीएस व मेडिकल पीजी में दाखिला दिलाने का झांसा देकर करोड़ों रुपये हड़पे थे। 2018 में मामला सामने आने के बाद उसने गोमतीनगर के विजयंत खंड में नया दफ्तर खोल लिया था। विकास को इसी कंपनी में उसने जीएम बनाया था।  

सौरभ ने बताया कि डा. अजिताभ उसे नीट की परीक्षा देने वाले छात्रों की जानकारी उपलब्ध कराता था। इसके बाद विकास छात्रों व उनके घरवालों से एडमिशन की बात करता था। सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों से पांच से छह लाख रुपये वसूले जाते थे। फर्जीवाड़े की जड़ें मेडिकल कालेजों में भी फैली थीं। विभिन्न कालेजों के स्टाफ से मिलीभगत कर छात्रों को वहां काउंसिलिंग के लिए ले जाया जाता था। समय बीतने के बाद जब छात्रों का एडमिशन नहीं होता था और वह रुपये वापस मांगते थे तो उन्हें आरोपित धमकी देते थे। जिन मेडिकल कालेजों में सेंटिंग नहीं होती थी, वहां डा. अजिताभ मिश्र, मुंबई के प्रत्यूष कुमार और भोपाल के रितेश सिंह को  फर्जी डायरेक्टर बनाकर छात्रों से मिला दिया जाता था।

इन लोगों से हुई ठगी 

रायबरेली निवासी अशोक सिंह से पांच लाख, आजमगढ़ निवासी पवन यादव से नौ लाख, पटना निवासी संजीव पांडेय से 20 लाख, एटा निवासी ममतेश शाक्य से छह लाख व विमलेश, कैलाश और अनिल से भी लाखों रुपये हड़पे थे। आरोपित ने सुलतानपुर निवासी डा. डीएस मिश्रा से पीजी में दाखिले के लिए 90 लाख, कर्नाटक की शशिधर से 80 लाख, बेंगलुरु के संदीप से 65 लाख रुपये लिए थे। 

बिहार से ली थी बीएमएस की डिग्री

आरोपित अजिताभ ने बताया कि वर्ष 2007 में उसने मुजफ्फरपुर बिहार से बीएमएस की डिग्री ली थी। इसके बाद वर्ष 2008 में अपनी कंपनी बना ली। वर्ष 2016 में नीट परीक्षा शुरू होने पर उसने टीएस मिश्र मेडिकल कालेज लखनऊ में एडमिशन एडवाइजर के पद पर नौकरी ज्वाइन कर ली। वर्ष 2019 में केएम मेडिकल कालेज मथुरा में एडमिशन डायरेक्टर रहा।   

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