नॉर्वे के माथे पर हिंदी की बिंदी सजा कर बढ़ाया देश का मान

निज भाषा उन्नति : राजधानी के ऐशबाग निवासी कर रहे हिंदी का प्रसार, विदेशियों को भारतीय संस्कृति से करा रहे रूबरू।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Thu, 03 Jan 2019 07:29 PM (IST) Updated:Fri, 04 Jan 2019 08:48 AM (IST)
नॉर्वे के माथे पर हिंदी की बिंदी सजा कर बढ़ाया देश का मान
नॉर्वे के माथे पर हिंदी की बिंदी सजा कर बढ़ाया देश का मान

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय] । पाश्चात्य संस्कृति की दखल के बीच मातृभाषा हिंदी और भारतीय संस्कृति को बचाने की चुनौती देश में ही मुंह बाए खड़ी है। ऐसे में ईसाई बाहुल्य देश नॉर्वे में हिंदी को स्थापित करने की चुनौती राजधानी के ऐशबाग निवासी सुरेश चंद्र शुक्ला ने उठा कर शहर और प्रदेश का ही नहीं देश का मान बढ़ा दिया है। नॉर्वे के माथे पर हिंदी की बिंदी लगाने के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

नॉर्वे में रहने वाले 22 हजार भारतीयों को देश की संस्कृति से रूबरू कराने वाले सुरेश चंद्र की उम्र भले ही 64 के पार हो गई हो, लेकिन उनके अंदर यहां की संस्कृति और हिंदी को बचाने का जज्बा प्रेरित करने वाला है। रस्तोगी इंटर कॉलेज से स्कूली शिक्षा और फिर केकेवी से स्नातक करने के बाद 1980 में वह राजधानी से नॉर्वे चले गए। नॉर्वे में दो साल नार्वेजीय भाषा में पत्रकारिता का कोर्स किया और फिर वहीं पर पत्रकारिता शुरू कर दी। 1988 से वह हिंदी और नॉर्वेजीय भाषा में त्रैमासिक पत्रिका निकालकर दोनों देशों में हिंदी को सम्मान दिला रहे हैं।

ओस्लो नगर पार्लियामेंट के सदस्य भी रहे

नॉर्वे के ओस्लो नगर पार्लियामेंट में दो बार सदस्य चुने गए सुरेश चंद्र की बेटी संगीता शुक्ला हिंदी स्कूल भी चलाती हैं। स्कूल में अंग्रेजी के साथ हिंदी में भारतीय संस्कृति की जानकारी दी जाती है। दीपावली, दुर्गा पूजा, दशहरा व होली जैसे त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। त्योहार में वहां के मूल निवासी भी बिना भेदभाव के हिस्सा लेते हैं। नाटक ‘वापसी’ के मंचन के लिए वह इस महीने राजधानी आए हैं। विदेश में हिंदी और भारतीय संस्कृति के विकास के लिए उन्हें ‘उप्र प्रवासी रत्न’, ‘हिंदी सेवा सम्मान’ और ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार समेत कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुका है।

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