यूपी की 77 फीसद आबादी 10 लाख कोरोना टेस्ट के भरोसे, गांवों में विशेष अभियान का आखिरी दिन आज
यूपी सरकार ने गांवों में कोरोना जांच अभियान के दौरान कुल दस लाख एंटीजेन टेस्ट का लक्ष्य निर्धारित किया। आबादी के अनुपात में तो यह जांचें काफी कम हैं। इस तरह तो अभियान पूरा होने के बाद भी गांवों में संक्रमण के प्रसार की आशंका बनी ही रह सकती है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद गांवों में संक्रमण फैलने के खतरे को लेकर सरकार आशंकित और चिंतित थी। कोरोना वायरस से संक्रमितों की तलाश के लिए ही प्रदेश के सभी राजस्व गांवों में जांच के लिए विशेष अभियान शुरू किया गया, जिसका मंगलवार को अंतिम दिन है। मगर, जांच का जो कुल लक्ष्य रखा गया है, उससे संदेह है कि अभियान पूरा होने के बाद भी कहीं संक्रमण फैलने की आशंका बनी न रह जाए।
कोरोना की दूसरी लहर में बड़ी तेजी से संक्रमण फैला। संक्रमण की दर इतनी अधिक थी कि उससे लगभग तमाम बड़े जिलों में रोगियों की संख्या बढ़ती गई। उनके इलाज के संसाधन भी कम पड़ने लगे। जैसे-जैसे व्यवस्था में सरकार जुटी हुई है। इसी बीच हुए पंचायत चुनावों ने आशंका खड़ी कर दी कि कोविड प्रोटोकाल के उल्लंघन से ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना तेजी से फैल सकता है। लिहाजा, सरकार ने इसी चिंता में पांच मई से प्रदेश के सभी राजस्व गांवों में जांच का विशेष अभियान शुरू कराया।
निगरानी समितियों को घर-घर दस्तक देकर लक्षणयुक्त ग्रामीणों की तलाश का जिम्मा दिया गया, जबकि रैपिड रेस्पांस टीमों को एंटीजेन टेस्ट और मेडिसिन किट वितरण की जिम्मेदारी दी गई। उसी अभियान का अंतिम दिन 11 मई यानी मंगलवार को है। अब तक जो जांच हुई है, उसमें संक्रमित मरीज काफी कम ही पाए गए हैं।
सरकार की ओर से पिछला आंकड़ा आठ मई को जारी किया गया, जिसके मुताबिक, एक दिन में 48,63,298 घरों तक टीम पहुंची। 68,900 ग्रामीणों में कोरोना के लक्षण पाए गए, जबकि जांच करने पर मात्र 1210 मरीज ही संक्रमित निकले। फौरी तौर पर तो यह राहत की बात लगती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इतनी जांचें पर्याप्त हैं? दरअसल, यूपी की कुल आबादी लगभग 24 करोड़ है। पिछली जनगणना के अनुसार, 77 फीसद से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
यूपी सरकार ने गांवों में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए विशेष अभियान के दौरान कुल दस लाख एंटीजेन टेस्ट का लक्ष्य निर्धारित किया। आबादी के अनुपात में तो यह जांचें काफी कम हैं। इस तरह तो अभियान पूरा होने के बाद भी गांवों में संक्रमण के प्रसार की आशंका बनी ही रह सकती है।