कृषि कानूनों के विरोध को बेवजह मान रहे लघु व सीमांत किसान, नए दौर में खुले बाजार की दरकार

कृषि कानूनों को लेकर हो रही राजनीति के भीतर झांकने की भी जरूरत है। यह देखना होगा कि खुले बाजार के जमाने में किसानों को सीमित दायरे में बांधे रखने का लाभ किसे हो रहा है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Sat, 19 Sep 2020 03:12 AM (IST) Updated:Sun, 20 Sep 2020 06:05 AM (IST)
कृषि कानूनों के विरोध को बेवजह मान रहे लघु व सीमांत किसान, नए दौर में खुले बाजार की दरकार
कृषि कानूनों के विरोध को बेवजह मान रहे लघु व सीमांत किसान, नए दौर में खुले बाजार की दरकार

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। केंद्र सरकार के कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन बिलों को लेकर हो रही राजनीति के भीतर झांकने की भी जरूरत है। यह भी देखना होगा कि खुले बाजार के जमाने में किसानों को सीमित दायरे में बांधे रखने का लाभ किसे हो रहा है। क्या किसान को अपनी उपज को कहीं भी बेचने की आजादी नहीं मिलनी चाहिए। खासतौर से लघु व सीमांत किसानों को आढ़तियों के चंगुल से निकल कर कलस्टर खेती, कृषक उत्पादक संगठन व कंपनी और सहकारिता के जरिये आत्मनिर्भरता की ओर नहीं बढ़ाना चाहिए। 

इन सवालों को प्रासंगिक बताते हुए सहारनपुर के किसान धर्मवीर सिंह कहते हैं कि नए दौर में खेती को लाभकारी बनाना है तो वक्त के अनुसार बदलाव करने होंगे। नई पीढ़ी का खेती किसानी में लगाव बनाए रखने के लिए व्यापारिक नजरिया और माहौल बनाना भी जरूरी है। ऑनलाइन खरीद फरोख्त से किसान को मंडियों की बंदिशों से भी मुक्ति मिलेगी।

शोषण का अड्डा बन चुकी हैं मंडियां : किसानों को उपज का मूल्य दिलाने व अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद की स्थापना 1973 में की गयी थी। इसमें संदेह नहीं है कि मंडियों की स्थापना से किसानों को बहुत कुछ राहत मिली परंतु धीरे धीरे ये मंडियां आढ़तियों व अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों के शोषण का केंद्र बनती जा रही हैं। उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख महामंत्री लोकेश अग्रवाल का कहना है कि मंडियां नौकरशाही की मनमानी के कारण प्रासंगिकता खो रही है। अलीगढ़ के छोटी जोत वाले किसान विनय सिंह कहते हैं कि प्रदेश के दो करोड़ से अधिक किसान लघु व सीमांत श्रेणी में आते हैं। किसानों को नए कानून में राहत मिलेगी, उपज की बिक्री के दाम तीन दिन में मिलने की व्यवस्था होगी और मंडी शुल्क व आढ़त भी नहीं देनी होगी।

एमएसपी रहेगी तो डर काहे का : किसानों को खतरा था कि नए कानूनों के जरिये कहीं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था खत्म न हो जाए और निजी कंपनियों व कारोबारियों का एकाधिकार किसानों की उपज की कीमतों को प्रभावित न करने लगे। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही कहते हैं कि केंद्र सरकार ने पहली बार 14 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद करायी है। फसल बोआई से दो माह पहले एमएसपी घोषित करने से किसानों को अपनी पसंद की फसल बोने का अवसर मिल जाता है। शाही का कहना है कि कांग्रेस व सपा के शासन काल में सरकारी खरीद नहीं हो पाती थी। किसानों को पूरी तरह आढ़तियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाता था।

अब खुलेंगी किसानों की बेड़ियां : बाराबंकी के प्रगतिशील किसान पद्मश्री रामसरन वर्मा का कहना है कि नए कानून से किसानों की बेड़ियां खुलेंगी और बिचौलियों के गिरोह से मुक्ति मिलेगी। मंडी शुल्क खात्मे और देश में कही भी अपनी उपज बेचने की आजादी किसानों को समृद्ध करेगी। बुलंदशहर के जैविक खेती विशेषज्ञ किसान पद्मश्री भारतभूषण त्यागी को भी कृषि बिलों के विरोध का औचित्य समझ में नहीं आ रहा। उनका कहना है कि खुले बाजार का लाभ किसानों को मिलेगा और प्रतिस्पर्धी दामों में अपनी उपज बेचने की समझ पैदा होगी। जब बिचौलिए खत्म हो रहे हैं तो विरोधियों में बिलबिलाहट क्यों है।

ये हैं तीन विधेयक कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता  कृषि सेवा विधेयक 2020

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